गौरी लंकेश हत्याकांड: SC ने रद्द किया हाईकोर्ट का फैसला, मोहन नायक पर चलगा KCOCA के तहत मुकदमा

नई दिल्ली. गौरी लंकेश हत्याकांड मामले में आरोपी मोहन नायक (Mohan Nayak) के खिलाफ कर्नाटक संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (KCOCA) के तहत मामला चलेगा. बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में मामले पर सुनवाई हुई, जिसमें शीर्ष अदालत ने गौरी लंकेश की बहन और फिल्म निर्माता कविता लंकेश (Kavita Lankesh) की याचिका स्वीकार कर ली. कविता ने कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) के फैसले को शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी. लंकेश की पांच सितंबर 2017 की रात बेंगलुरु के राजराजेश्वरी नगर में उनके घर के पास गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.

जस्टिस एएम खानविलकर, दिनेश माहेश्वरी और सीटी रविकुमार की बेंच ने कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया है, जिसमें उच्च न्यायालय ने आरोपी के खिलाफ KCOCA के आरोप हटा दिए थे. शीर्ष अदालत ने 21 सितंबर 2021 को अपना आदेश रिजर्व रख लिया था. उस दौरान कविता लंकेश के लिए ओर से कोर्ट में वरिष्ठ वकील हुजैफा अहमदी पहुंचे थे. जबकि, आरोपी नायक का पक्ष एड्वोकेट प्रभु एस पाटिल ने रखा था.

सितंबर में क्या हुई थी कार्यवाही
उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को संकेत दिया कि वह पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या में कथित तौर पर संलिप्त एक आरोपी के खिलाफ कर्नाटक संगठित अपराध नियंत्रण कानून (केसीओसीए) के प्रावधानों के तहत कथित अपराधों के लिए आरोपपत्र को खारिज करने के उच्च न्यायालय के आदेश के एक हिस्से को रद्द करने का इच्छुक है. न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार की पीठ ने आरोपी की ओर से पेश वकील से कहा कि उसे जो दिया गया है वह ‘बोनस’ है क्योंकि कर्नाटक उच्च न्यायालय ने भी केसीओसीए के तहत कथित अपराधों के लिए उसके खिलाफ आरोप पत्र को खारिज कर दिया है.

शीर्ष अदालत ने पत्रकार की बहन कविता की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की. याचिका में इस साल 22 अप्रैल को उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी गई है जिसमें आरोपी मोहन नायक के खिलाफ जांच के लिए केसीओसीए के प्रावधान का इस्तेमाल करने के पुलिस प्राधिकार के 14 अगस्त 2018 के आदेश को रद्द कर दिया गया था.

पीठ ने कहा था, ‘हम फिलहाल के लिए आपको इतना संकेत दे रहे हैं कि हम आदेश के अंतिम भाग को रद्द करने के इच्छुक हैं. पूर्व अनुमति पर भले ही हम उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निष्कर्ष को बरकरार रखें, आप उस गिरोह के सदस्य हैं या नहीं, और सामग्री का मिलान करने के बाद आरोपपत्र पेश करने के लिए संबंध में कोई भी तथ्य, जांच एजेंसी को जांच करने से नहीं रोकता है.’

शीर्ष अदालत ने राज्य की ओर से पेश वकील से यह भी पूछा कि आरोपी के खिलाफ कोई पूर्व अपराध दर्ज किए बिना प्राधिकार द्वारा केसीओसीए को लागू करने की मंजूरी कैसे दी गई और उसे संगठित अपराध गिरोह के सदस्य के रूप में कैसे बताया जा सकता है.

राज्य के वकील ने कहा कि प्रारंभिक आरोप पत्र भारतीय दंड संहिता और शस्त्र कानून के प्रावधानों के तहत दाखिल किया गया था तथा उसके बाद जांच के दौरान जांच अधिकारी के संज्ञान में आरोपी की भूमिका आई जिसके बाद मंजूरी मांगी गई. आरोपी की ओर से पेश वकील ने कहा कि अगर अभियोजन पक्ष की दलीलें मान ली जाए तो किसी को भी गिरोह का सदस्य कहा जा सकता है. कविता लंकेश के वकील ने दलील दी कि उच्च न्यायालय ने इस निष्कर्ष पर पहुंचने में गलती की है कि केसीओसीए आरोपी के खिलाफ लागू नहीं होता. पीठ ने जिरह सुनने के बाद पक्षकारों से कहा कि वे एक सप्ताह के भीतर अपनी लिखित दलीलें दाखिल करें.

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