UP: विकलांग दलित के घर पर महिला SDM को बुलडोजर चलाना पड़ा महंगा, हुआ एक्शन.. पड़ गए ‘लेने क देने’

उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले में एक विकलांग दलित व्यक्ति के मकान को बिना किसी पूर्व नोटिस और कानूनी प्रक्रिया के ध्वस्त करने का मामला सामने आया है। इस घटना से प्रशासनिक रवैये पर सवाल उठे और व्यापक जन आक्रोश फैल गया। पीड़ित व्यक्ति ने न्याय के लिए अधिकारियों से लेकर मुख्यमंत्री तक गुहार लगाई थी। मामला सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, जिससे सरकार हरकत में आई और उपजिलाधिकारी अर्चना अग्निहोत्री को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया।
क्या था पूरा मामला?
दरअसल, फतेहपुर के खागा तहसील क्षेत्र के अंतर्गत एक दलित और विकलांग व्यक्ति का मकान, जिसे उसने बड़ी मेहनत से बनाया था, उसे प्रशासन ने बिना किसी कोर्ट आदेश, नोटिस या वैकल्पिक व्यवस्था के बुलडोजर चला कर गिरा दिया। स्थानीय लोगों और परिजनों के अनुसार, न तो कोई सुनवाई की गई, न ही मुआवज़ा दिया गया। पीड़ित व्यक्ति ने अपनी लाचारी और पीड़ा मीडिया के सामने रखी और बताया कि अब उसके पास रहने के लिए कोई जगह नहीं है।
सोशल मीडिया से मचा हड़कंप
इस घटना का वीडियो और पीड़ित की अपील जब सोशल मीडिया पर वायरल हुई, तो लोगों में भारी आक्रोश देखा गया। ट्विटर, फेसबुक और यूट्यूब पर #JusticeForDalit, #SDMAction जैसे ट्रेंड चलने लगे। मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए विधायकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और मानवाधिकार संगठनों ने भी संज्ञान लिया।
योगी सरकार की सख्त कार्रवाई
उत्तर प्रदेश सरकार ने मामले को गंभीरता से लिया और SDM अर्चना अग्निहोत्री को निलंबित करने का आदेश जारी किया। मुख्यमंत्री कार्यालय से यह भी कहा गया कि इस प्रकार की कार्रवाई में यदि कानून का उल्लंघन हुआ है, तो दोषियों के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाएगी। अपर मुख्य सचिव ने इस आदेश की पुष्टि की है और एक वरिष्ठ अधिकारी को जांच सौंपी गई है।
संविधान और कानून पर सवाल
यह मामला केवल एक प्रशासनिक चूक नहीं बल्कि संविधान प्रदत्त अधिकारों के हनन की मिसाल है। बिना नोटिस या कोर्ट ऑर्डर के मकान गिराना सीधे तौर पर प्राकृतिक न्याय और मानवाधिकारों का उल्लंघन है। खासकर जब पीड़ित एक विकलांग और दलित हो, तो मामला और भी संवेदनशील हो जाता है।
प्रशासनिक जवाबदेही की दरकार
फतेहपुर की यह घटना बताती है कि ज़मीनी स्तर पर अब भी कुछ अधिकारी सत्ता के अहंकार में नागरिक अधिकारों को रौंदते हैं। योगी सरकार का यह कदम एक संदेश है कि ऐसी मनमानी अब नहीं चलेगी। अब निगाहें इस बात पर हैं कि जांच में दोष सिद्ध होने पर क्या कड़ा दंड दिया जाएगा या मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा।