देश को मिलेगा 200 किलोमीटर लंबा पहला इलेक्ट्रिक हाईवे, जानिए इस पर वाहन कैसे चलते हैं? और आपको इससे क्या फायदा होगा?

 

जल्द ही देश को पहला इलेक्ट्रिक हाईवे मिल सकता है। सरकार दिल्ली से जयपुर के बीच इलेक्ट्रिक हाईवे बनाने की तैयारी कर रही है। केंद्रीय सड़क मंत्री नितिन गडकरी ने राजस्थान के दौसा में हाल ही में इसकी घोषणा की। इस हाईवे पर सभी इलेक्ट्रिक वाहन ही चलेंगे। इससे पैसा भी बचेगा और प्रदूषण भी कम होगा। केंद्रीय मंत्री की इस घोषणा को देश में इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने की राह में बड़ा कदम माना जा रहा है।

समझते हैं, इलेक्ट्रिक हाईवे क्या होता है? ये काम कैसे करता है? इससे आपको क्या फायदा होगा? और दुनिया में कहांकहां इलेक्ट्रिक हाईवे पर काम चल रहा है?…

सबसे पहले समझिए इलेक्ट्रिक हाईवे होता क्या है?

आसान भाषा में समझें तो ऐसा हाईवे जिसपर इलेक्ट्रिक वाहन चलते हों। आपने ट्रेन के ऊपर एक इलेक्ट्रिक वायर देखा होगा। ट्रेन के इंजन से ये वायर एक आर्म के जरिए कनेक्ट होता है, जिससे पूरी ट्रेन को इलेक्ट्रिसिटी मिलती है। इसी तरह हाइवे पर भी इलेक्ट्रिक वायर लगाए जाएंगे। हाइवे पर चलने वाले वाहनों को इन वायर्स से इलेक्ट्रिसिटी मिलेगी। इसे ही ई-हाइवे, यानी इलेक्ट्रिक हाइवे कहा जाता है। इस हाईवे पर इलेक्ट्रिक वाहनों को चार्ज करने के लिए थोड़ी-थोड़ी दूरी पर चार्जिंग पॉइंट भी होंगे।

कहां बनाया जा रहा है?

नितिन गडकरी ने घोषणा की है कि देश का पहला ई-हाईवे दिल्ली और जयपुर के बीच बनाया जाएगा। 200 किलोमीटर लंबे इस हाईवे को दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस-वे के साथ ही एक नई लेन पर बनाया जाएगा। ये लेन पूरी तरह इलेक्ट्रिक होगी और इसमें केवल इलेक्ट्रिक वाहन ही चलेंगे। सरकार इसके लिए स्वीडन की कंपनियों से बात कर रही है। पूरी तरह तैयार होने के बाद ये देश का पहला ई-हाईवे होगा।

हाईवे से आपको क्या फायदे होंगे?

  • ई-हाईवे की सबसे बड़ी खासियत इसमें वाहनों की सस्ती आवाजाही है। नितिन गडकरी ने कहा था कि ई-हाईवे से लॉजिस्टिक कॉस्ट में 70% की कमी आएगी। फिलहाल चीजों की कीमतों में बढ़ोत्तरी की एक बड़ी वजह ट्रांसपोर्टेशन कॉस्ट है। अगर ट्रांसपोर्टेशन कॉस्ट में कमी आएगी, तो चीजें सस्ती हो सकती हैं।
  • ये पूरी तरह इको फ्रेंडली होंगे। वाहनों को चलाने के लिए इलेक्ट्रिसिटी का इस्तेमाल किया जाएगा, जो पेट्रोल-डीजल के मुकाबले सस्ती होगी और पर्यावरण के लिए भी कम हानिकारक होगी।
  • पेट्रोल-डीजल पर से निर्भरता कम होगी। महंगे पेट्रोल-डीजल की वजह से ट्रांसपोर्टशन कॉस्ट भी बढ़ी है। साथ ही पेट्रोल-डीजल पर्यावरण के लिए भी हानिकारक है।

किस तरह काम करते हैं इलेक्ट्रिक हाईवे?

दुनियाभर में तीन अलग-अलग तरह की टेक्नोलॉजी ई-हाईवे के लिए इस्तेमाल की जाती हैं। भारत सरकार स्वीडन की कंपनियों से बात कर रही है, इसलिए माना जा रहा है कि स्वीडन में जो टेक्नोलॉजी इस्तेमाल की जा रही है, वही भारत में भी होगी।

स्वीडन में पेंटोग्राफ मॉडल इस्तेमाल किया जाता है, जो भारत में ट्रेनों में भी इस्तेमाल किया जाता है। इसमें सड़क के ऊपर एक वायर लगाया जाता है, जिसमें इलेक्ट्रिसिटी फ्लो होती है। एक पेंटोग्राफ के जरिए इस इलेक्ट्रिसिटी को वाहन में सप्लाई किया जाता है। ये इलेक्ट्रिसिटी डायरेक्ट इंजन को पॉवर देती है या वाहन में लगी बैटरी को चार्ज करती है।

इसके अलावा कंडक्शन और इंडक्शन मॉडल का भी इस्तेमाल किया जाता है। कंडक्शन मॉडल में सड़क के भीतर ही वायर लगा होता है, जिसपर पेंटोग्राफ टकराता हुआ चलता है।

कंडक्शन मॉडल पर बना ई-हाईवे। इसमें व्हीकल के पिछले हिस्से में पेंटोग्राफ लगा होता है, जो सड़क पर बिछे इलेक्ट्रिक वायर से सप्लाई लेता है।

तीसरा मॉडल होता है इंडक्शन मॉडल। इसमें कोई वायर नहीं होता। इलेक्ट्रोमैग्नेटिक करंट के जरिए वाहन को इलेक्ट्रिसिटी सप्लाई की जाती है।

इंडक्शन मॉडल में इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड के जरिए वाहन को इलेक्ट्रिसिटी सप्लाई की जाती है। इसका इस्तेमाल बेहद कम होता है।

स्वीडन और जर्मनी में जो इलेक्ट्रिक वाहन इस्तेमाल होते हैं, उनमें हाइब्रिड इंजन होता है, यानी वे इलेक्ट्रिसिटी के साथ-साथ पेट्रोल-डीजल से भी चल सकते हैं।

क्या हाईवे पर कारजीप जैसे पर्सनल व्हीकल भी चलाए जा सकेंगे?

स्वीडन, जर्मनी जैसे देशों में इनका इस्तेमाल लॉजिस्टिक ट्रांसपोर्ट करने के लिए ही किया जाता है। पर्सनल व्हीकल जैसे कार, जीप इलेक्ट्रिसिटी से चलती तो हैं, लेकिन उन्हें बैट्री से ऑपरेट किया जाता है। डायरेक्ट सप्लाई केवल ट्रक और पब्लिक ट्रांसपोर्ट के लिए इस्तेमाल हो रहे वाहनों में ही दी जाती है। अगर आपका पर्सनल व्हीकल इलेक्ट्रिक है, तो आप इस हाईवे का इस्तेमाल कर सकेंगे। आपकी सुविधा के लिए हर थोड़ी दूरी पर चार्जिंग स्टेशन बनाया जाएगा, जहां आप अपना वाहन चार्ज कर सकते हैं।

इस राह में चुनौतियां क्या हैं? वो भी समझ लीजिए

  • सबसे बड़ी चुनौती इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलप करने की है। इलेक्ट्रिक हाईवे को बनाने का खर्च आम रोड के मुकाबले ज्यादा आता है। साथ ही शुरुआत में पूरे देश में ऐसे हाईवे का नेटवर्क खड़ा करना बड़ी चुनौती है। ये काम बेहद खर्चीला और इसमें समय भी ज्यादा लगता है।
  • केवल इलेक्ट्रिक हाइवे बनाना ही काफी नहीं है। उनपर चलने के लिए इलेक्ट्रिक वाहन भी होने चाहिए। पेट्रोल-डीजल से चल रहे वाहनों को इलेक्ट्रिक वाहनों से रिप्लेस करने में सालों लग सकते हैं।
  • इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए बैटरी बनाना अपने आप में एक जटिल टास्क है। इस प्रॉसेस के दौरान कई तरह खतरनाक केमिकल रिलीज होते हैं। इस्तेमाल के बाद भी ये पर्यावरण के लिए हानिकारक होती है। पर्यावरण कार्यकर्ता इस मुद्दे को कई बार उठा चुके हैं। साथ ही व्हीकल में लगी बैटरियां महंगी होती हैं।

दुनिया के और किनकिन देशों में है हाईवे?

इलेक्ट्रिक हाईवे का इस्तेमाल स्वीडन और जर्मनी में हो रहा है। स्वीडन ई-हाईवे शुरू करने वाला दुनिया का पहला देश है। स्वीडन ने 2016 में ई-हाइवे का ट्रायल शुरू किया था और 2018 में पहला ई-हाईवे शुरू किया।

स्वीडन के बाद जर्मनी ने 2019 में इलेक्ट्रिक हाईवे की शुरुआत की। ये हाईवे 6 मील लंबा है। इस हाईवे के अलावा जर्मनी ने बसों के लिए वायरलेस इलेक्ट्रिक रोड भी बनाया है। स्वीडन और जर्मनी में पब्लिक ट्रांसपोर्ट में इलेक्ट्रिक व्हीकल को बढ़ावा देने के लिए अलग-अलग प्रोजेक्ट चल रहे हैं। ब्रिटेन और अमेरिका में भी ई-हाईवे पर काम चल रहा है।

 

Related Articles

Back to top button