इस ग्रह की वजह से हो जाता है तलाक़

आज वर्तमान समय में दंपतियों के बीच वाद विवाद और तलाक होना आम बात हो गई है। अगर आप ज्योतिष की दृष्टि से देखे तो हमारे ऋषि मुनियों से हजारों साल पहले ही ग्रह नक्षत्रों की ऊर्जाओं का अध्ययन कर मनुष्य के स्वभाव और उसके जीवन में होने वाली घटनाओं की व्याख्या कर दी थी।

आज इसी लेख में हम समझने वाले है की आखिर ऐसे क्या कारण होते है की मनुष्य अपने ही पति या पत्नी से दुःखी हो जाता है।

सबसे पहले आता है विवाद का योग यानी दोनों लोग विवाद तो करते है लेकिन अलग नहीं होते, उनका प्रेम बना रहता है।

ज्योतिष में सप्तम भाव और उसके कारक से जातक के होने वाले जीवनसाथी का पता लगाया जाता है, उसके अलावा वह नवमांश कुंडली में किस स्थिति में है वो भी मायने रखती है।

स्त्री की कुंडली में पति का कारक बृहस्पति है और पुरुष की कुंडली में पत्नी का कारक शुक्र है। अगर किसी जातक की कुंडली में शुक्र केंद्र या त्रिकोण में बलवान होकर बैठा हो तो ऐसा व्यक्ति स्त्री सुख भोगता है।

उसके विवाह के बाद उसका कल्याण ही कल्याण होता है और शुक्र नवमांश में मजबूत हो जाए तो अखंड संपत्ति का स्वामी होता है लेकिन अगर उसकी कुंडली में सप्तम भाव का स्वामी या सप्तम भाव पाप ग्रह जैसे मंगल, राहु या शनि से पीड़ित हो तो उनकी दशा अंतर्दशा में या गोचर में जब भी वो सप्तम से संबंध बनाते है दोनों में विवाद होता है।

ज्योतिष का एक सर्वमान्य नियम है की अगर भाव पीड़ित हो लेकिन भाव का कारक बलवान हो तो उस भाव संबंधी हानि में कमी करता है। ठीक ऐसे ही आप इसे स्त्री की कुंडली से समझ सकते है ,अगर किसी स्त्री का गुरु बलवान है तो वो पति का सुख भोगती है और समस्त ऐश्वर्य का भोग करती है लेकिन अगर मंगल और सप्तम पाप पीड़ित हो तो विवाद या तनाव भी होता है लेकिन कारक ग्रह के बलवान होने के कारण दोनों अलग नहीं होते है।

अब आते ही विवाद और तलाक दोनों पर –

ज्योतिष में पंचम भाव मनुष्य के प्रेम का, सप्तम सम्भोग और द्वादश शैया सुख का भाव है। मंगल रक्त और शुक्र वीर्य के कारक है। अगर किसी भी कुंडली में वैवाहिक जीवन की सफलता को देखना है तो मंगल, शुक्र, सप्तम और सप्तम के कारक का बलवान होना बड़ा जरुरी है।

दरअसल जब भी किसी जातक या जातिका के सप्तम भाव पर राहु, मंगल या शनि जैसे ग्रहों का प्रभाव आता है तो ना सिर्फ देरी से विवाह के योग बनते है बल्कि विवाह के बाद रिश्ता खत्म भी हो जाता है।

अगर सप्तम भाव का स्वामी छटे भाव और बारहवें भाव में चला जाता है तो वो अपनी पूरी ऊर्जा खो देता है। बारहवाँ भाव सप्तम से छठा और छठा भाव सप्तम से बारहवाँ हो जाता है। कालिदास के भावात भवं सिद्धांत से ये स्थिति क्लेश का कारण बनती है।

पुरुष की कुंडली में शुक्र अशुभ स्थान में मंगल राहु के प्रभाव में हो तो जातक पर स्त्री गामी हो जाता है और अपनी पत्नी से बिछोह का सामना करता है। अगर स्त्री की कुंडली में उसका गुरु नीच होकर पाप स्थान में हो या पाप ग्रहों से पीड़ित हो तो ऐसी स्त्री अपने पति से कष्ट पाकर उससे अलग होती है।

अगर स्त्री बलवान शुक्र और मंगल की युति लेकर जन्मी है और उसका सप्तम और गुरु दूषित है तो ऐसी स्त्री अपने पति से शारीरिक रुप से सुखी नहीं होकर किसी और के पास जाने के लिए उससे अलग होती है।

अगर दोनों की कुंडली में पंचम, सप्तम का संबंध अशुभ स्थानों से हो तो ऐसे प्रेमी सिर्फ आवेश में आकर प्रेम विवाह करते है और सुख नहीं मिलने के कारण फिर अलग भी हो जाते है।

अक्सर ये देखा गया है की लग्न, नवम का गुरु स्त्री की कुंडली में उसे पति से अलग नहीं होने देता लेकिन ऐसी स्त्री अपने पति से सुख भी नहीं पाती अगर उसका सप्तम भाव का स्वामी कुंडली में सहयोग नहीं कर रहा हो।

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