दिल्ली हाईकोर्ट ने 13 वर्षीय छात्रा के यौन उत्पीड़न मामले में कोच को जमानत देने से किया इनकार

नई दिल्ली. दिल्ली उच्च न्यायालय ने 13 वर्षीय अपनी एक छात्रा के यौन उत्पीड़न के आरोपी एक बॉस्केटबॉल कोच को जमानत देने इनकार कर दिया है. कोर्ट ने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि जीवन के प्रारंभिक चरण में भरोसेमंद रिश्ते से विश्वास उठ जाने से बच्चे को भविष्य में अंतर-वैयक्तिक संबंध विकसित करने में बाधा आ सकती है. न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा कि ‘‘यौन हमला या यौन उत्पीड़न की हरकत सामाजिक विकास बाधित करने एवं कई तरह की मनोवैज्ञानिक समस्याएं पैदा कर सकती है. और उसके अलावा यह बच्चे में मानसिक अवसाद के अलावा भविष्य में उसकी चिंतन प्रक्रिया को प्रभावित कर सकती है.’’

न्यायमूर्ति प्रसाद ने बुधवार को जारी अपने आदेश में कहा, ‘‘ बच्चे के कल्याण पर सर्वोच्चता के साथ विचार किया जाए, क्योंकि शुरूआती चरण में उसकी मानसिक वृति नाजुक होती है और उसपर जल्द असर पड़ता है. बालपन में यौन हमले के दीर्घकालिक प्रभाव बेहद गहरे होते हैं. इससे बच्चे का सामान्य सामाजिक विकास अवरूद्ध होता है और कई मनोवैज्ञानिक समस्या हो सकती है जिसके लिए मनोचिकित्सकीय उपचार की जरूरत हो सकती है.’’ आरोपी की इस दलील पर कि पीड़िता ने सीधे-साधे व्यवहार का गलत मतलब निकाल लिया हो, अदालत ने कहा कि वह संभवत: जानबूझकर की गयी हरकत और असावधानीवश आचरण के बीच फर्क करना अच्छी तरह समझती है.

अदालत ने कहा कि आरोप तय होने और पीड़िता से जिरह करने से पहले जमानत देने से बाल यौन अपराध संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम , 2012 के पीछे का मकसद निष्फल हो सकता है. उच्च न्यायालय ने जमानत अर्जी खारिज करते हुए निचली अदालत को एक महीने के अंदर आरोप तय करने की दिशा में बढ़ने एवं आरोप तय हो जाने की स्थिति में अगले महीने पीड़िता से जिरह करने का निर्देश दिया. पीड़िता दिल्ली के एक पब्लिक स्कूल की नौवीं कक्षा की छात्रा है.

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