केईडीएल को राजनीतिक मुद्दा बनाकर भुनाने में जुटी कांग्रेस- भाजपा

कोटा। आजादी के बाद से लेकर आज तक राजनीतिक पार्टियां जनता की मूलभूत सुविधाओं के नाम पर पुराने और गिसे पीटे मुद्दों पर ही चुनाव लड़ती आ रही है। विकास का सपना दिखाकर कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा सत्ता हथियाने में कामयाब होती है। लेकिन आम जनता की समस्याएं 70 साल बाद भी जस की तस बनी हुई है। नाली-पठान का काम, साफ सफाई, पानी और बिजली का मामला हर बार कांग्रेस- भाजपा का चुनावी मुद्दा रहा है। इन मुद्दों के अलावा आज तक घोषणा पत्र में कोई एसा मुदा नहीं जिसे पार्टियों ने अपने घोषणा पत्र में शामिल किया हो। हो भी क्यों न क्योंकि जो भी पार्टी सत्ता में आई उसने कभी जनता की इन समस्याओं को गंभीरता से लिया ही नहीं।

बात करे बिजली की तो आज से 5 साल पहले तक जिन घरों में 60 वाट का बल्ब उपयोग करने के बाद भी लोगों को 250 से 500 रुपये और ज्यादा से ज्यादा हजार रुपये तक का बिल दिया जाता था। आज 60 वोट के बल्ब की जगह 8 वोट की एलईडी ने ले फिर भी बिलों की राशि घटने की जगह हजारों में दी जा रही है। कच्ची झोपड़ी में रहने वाले मजदूर जो दो वक्त की रोटी कमाने के लिए लोगों के घरों में झाड़ू पोंछा कर 4 से 5 हजार रुपये महीने कमा रहे हैं, उनको भी 5 हजार से 50 हजार तक का बिल जारी किया जा रहा है। विजलेंस टीम विद्युत चोरी के नाम पर सरकारी नियमों के विपरीत कार्रवाई करते हुए कार्यालय में बैठकर लोगों की वीसीआर भर रहे हैं। कार्रवाई के दौरान उपभोक्ताओं के हस्ताक्षर तक नहीं होते और 25 से 1 लाख तक की वीसीआर भरकर जनता को अपराधी बनाने पर तुले हुए है। बिजली पर राजनीति की बात करे तो वर्ष 2016 में तत्कालीन प्रदेश वसुंधरा सरकार की अनुसंशा पर केंद्र सरकार ने कोटा में उपभोक्ताओ को विद्युत उपलब्ध करवाने का ठेका 20 साल के लिए प्राइवेट बिजली कंपनी केईडीएल को दिया था।

प्राइवेट कंपनी के आने के बाद से आम नागरिकों कम्पनी के काम से असंतुष्ट नजर आए। कांग्रेस ने विरोध किया लेकिन भाजपा नेताओं ने जनता की आवाज को अनसुना कर दिया। प्राइवेट बिजली कम्पनी के अत्याचार बढ़ने लगे तो विधानसभा व लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने सत्ता की लालसा में केईडीएल के मुद्दे को भुनाया और चुनाव के दौरान केईडीएल को भगाने का वादा करते हुए लोगों को घर घर पर्चे वितरित किये गए। शहर की जनता ने केईडीएल से तंग आकर कांग्रेस का समर्थन कर सत्ता में बिठाया। इसका लाभ कोटा उत्तर से कांग्रेस के विधायक और वर्तमान यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल को मिला। सत्ता में आने के बाद 10 दिन में केईडीएल को कोटा से भगाने की घोषणा करने वाले यूडीएच मंत्री भी सत्ता पाने के बाद केईडीएल कम्पनी का कुछ नहीं कर सके। हालांकि इस दौरान सरकारी विभागों में केईडीएल की चोरी पकड़ कर उन्होंने जनता की सहानुभूति प्राप्त करने का प्रयास किया लेकिन इससे लाभ केवल सरकारी विभागों को ही मिला। आम जनता की समस्या जस तस तस बनी रही।

विपक्ष में रहते हुए भाजपा ने इस मुद्दे को हाईजैक किया और केईडीएल मुद्दे को चुनावी मुद्दा बनाकर कांग्रेस पार्टी को घेरते हुए कोरोना काल मे लोगों के बिल माफ नहीं करने का आरोप लगाते हुए सत्ता में आने का प्रयास किया जा रहा है। जिसके जवाब में यूडीएच मंत्री केईडीएल लो शहर में लाने का आरोप भाजपा पर लगाते हुए अपना बचाव कर भाजपा पर आरोप लगाकर निकाय चुनाव में फिर से लोगों को बरगलाने का काम कर रहे हैं। मतदाता भी 5 साल से केईडीएल की तानाशाही से परेशान रहने के बावजूद आज अपने ही जख्मो को भूलकर पार्टियों की आवभगत करने में लगे हुए है।

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