बढ़ती बिजली मांग के बीच भारत में कोयले की कमी, जानें रिपोर्ट

नई रिपोर्ट में केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण ने जिन 135 थर्मल पावर प्लांट्स को ट्रैक किया है, 26 सितंबर को उनमें से 103 में 8 दिनों से भी कम का कोयला भंडार बचा हुआ था जबकि अगस्त में यह आंकड़ा 74 था.भारत में बढ़ती बिजली की मांग पूरी करने में कोयला आधारित पावर प्लांट्स असमर्थ हो रहे हैं. पिछले दो महीनों में राज्यों के अंतर्गत आने वाले कई पावर प्लांट्स में कोयले की कमी चल रही है. जानकार इसकी वजह मॉनसून के चलते कोयला सप्लाई में आई बाधा, भुगतान में गड़बड़ी और बिजली की बढ़ी हुई मांग को बता रहे हैं. केंद्र सरकार कम कोयला भंडार वाले थर्मल पावर प्लांट्स को कोयले की आपूर्ति में प्राथमिकता देने की बात कह चुकी है. इसके बावजूद केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (CEA) का आंकड़ा दिखा रहा है कि पिछले एक महीने में ऐसे थर्मल पावर प्लांट्स की संख्या तेजी से बढ़ी है, जिनके पास प्लांट को आठ दिन चलाने के लिए भी पर्याप्त कोयला नहीं है. 10 प्लांट्स में कोयला खत्म सीईए की ओर से जारी की गई नई रिपोर्ट में एजेंसी ने जिन 135 थर्मल पावर प्लांट्स को ट्रैक किया है, 26 सितंबर को उनमें से 103 में 8 दिनों से भी कम का कोयला भंडार बचा हुआ था जबकि अगस्त में यह आंकड़ा 74 था. ऐसे थर्मल पावर प्लांट जिनमें कोयला पूरी तरह खत्म हो चुका है, उनकी संख्या भी अब बढ़कर 10 हो चुकी है जबकि 30 अगस्त को ऐसे सिर्फ तीन पावर प्लांट थे. इसी तरह ऐसे पावर प्लांट जिनके पास सिर्फ चार दिन का स्टॉक है, उनकी संख्या भी 88 हो गई है.

यह आंकड़ा बहुत गंभीर है क्योंकि इन 88 पावर प्लांट की बिजली उत्पादन क्षमता 109 गीगावॉट है. क्यों पैदा हुआ संकट कोरोना की वजह से लगे प्रतिबंधों में कमी आने के बाद भारत में बिजली की मांग तेजी से बढ़ी है. 7 जुलाई को यह अपने शीर्ष 200.57 गीगावाट के स्तर पर पहुंच गई थी. यह मांग अब भी 190 गीगावाट से ऊपर बनी हुई है. जब देश में बिजली की मांग चरम पर थी, तभी उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और राजस्थान जैसे चार बड़े राज्यों ने अपने अंतर्गत आने वाली बिजली इकाइयों के कोयला इस्तेमाल के लिए कोल इंडिया को किए जाने वाले भुगतान में चूक भी कर दी. जिसके बाद कोल इंडिया ने इनकी कोयला आपूर्ति कम कर दी. इससे बिजली संकट और गहरा गया

भुगतान बड़ी समस्या कोल इंडिया के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर डीडब्ल्यू को बताया, “राज्य सरकारों के अंतर्गत आने वाले पावर प्लांट और एनटीपीसी जैसी सरकारी कंपनियों को कोयले की सप्लाई एक समझौते के तहत होती है. इनके साथ कोल इंडिया, फ्यूल सप्लाई एग्रीमेंट (FSA) करता है. इसके बाद कोयले की सप्लाई पहले ही कर दी जाती है और राज्य इसके लिए बाद में भुगतान करते हैं. इन राज्यों ने समय से भुगतान नहीं किया है, जिसके चलते कोल इंडिया ने इनकी सप्लाई रोक दी है” एक अन्य अधिकारी ने भी नाम न जाहिर करने की शर्त पर बताया कि बारिश के मौसम में होने वाली कोयले की आपूर्ति में कमी का अब उतना असर नहीं है और यह सामान्य ढंग से हो रही है. असली समस्या भुगतान को लेकर है. कोयले की विडंबना बिजली प्लांट में कोयले के भंडार में कमी के बाद केंद्रीय बिजली और कोयला मंत्रालय ने निर्देश दिया था कि कोयले की सप्लाई में अधिक भंडारण वाले थर्मल पावर प्लांट के बजाए कम भंडारण वाले प्लांट्स को वरीयता दी जानी चाहिए. फिर भी कमी बनी हुई है. इसके अलावा मंत्रालय ने बिजली उत्पादकों को कोयला आयात के जरिए कमी दूर करने का उपाय भी सुझाया था. बता दें कि भारत का कोयला क्षेत्र विडंबनाओं से भरा है.

भारत में दुनिया का चौथा सबसे बड़ा कोयले का भंडार है. कोल इंडिया, सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया की सबसे बड़ी कोयला खनन कंपनी है. भारत की कुल बिजली मांग का करीब 70 फीसदी कोयले से ही आता है. भारत में कोयले की कुल खपत का तीन-चौथाई हिस्सा बिजली उत्पादन पर ही खर्च होता है. इतने बड़े भंडार और इतने ज्यादा महत्व के बावजूद भारत दुनिया में कोयले का दूसरा सबसे बड़ा आयातक है. इन वजहों और जलवायु परिवर्तन के वैश्विक दबावों को देखते हुए भारत रिन्यूएबल एनर्जी को लेकर भी लगातार प्रयास कर रहा है. हालांकि जानकार मानते हैं कि भारत में जल्द ही कोई ऊर्जा स्रोत कोयले का सीधा विकल्प नहीं बन सकता है. तस्वीरः धरती को छलनी करने वाली वो मशीन.

 

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