अब सीजेआई के दफ्तर पर भी लागू हुआ सूचना का अधिकार, सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

अब आपका ‘सूचना का अधिकार’ देश के मुख्य न्यायाधीश के दफ्तर पर भी लागू होगा। अब आम नागरिक आरटीआई के तहत आवेदन लगाकर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के ऑफिस से सूचना मांग सकते हैं। इसकी इजाजत खुद सुप्रीम कोर्ट ने दी है। जजों की संविधान पीठ में अपने फैसले में कहा है, सीजेआई का ऑफिस एक पब्लिक ऑफिस है। नागरिकों को उससे सूचना पाने का हक है। हालांकि, यहां यह समझना जरूरी है कि जानकारी सीजेआई दफ्तर के प्रशासनिक आदेशों के बारे में मांगी जा सकती है, जजों के न्यायिक कामकाज की नहीं।

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में 2010 में आए दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है। इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के ही जन सूचना अधिकारी ने अपील दाखिल की थी। लेकिन कोर्ट ने अपने ही अधिकारी की अपील को खारिज कर दिया। इस अपील में सबसे बड़ा सवाल लोगों को सूचना देने से न्यायपालिका की स्वतंत्रता प्रभावित होने का था। वहीं कोर्ट ने माना है कि पारदर्शिता से न्यायपालिका की स्वतंत्रता प्रभावित नहीं होती है। हालांकि, कोर्ट ने फैसले में यह भी लिखा है कि सूचना देते समय निजी और गोपनीय जानकारी को सार्वजनिक न करने की भी कोशिश होनी चाहिए। लोगों के जानने के अधिकार और निजता के अधिकार में संतुलन बनाना जरूरी है।

देश की सर्वोच्च अदालत ने अपने फैसले में कुछ मामलों में आरटीआई एक्ट की धारा 11 लागू होने की भी बात कही है। इस धारा के तहत यह व्यवस्था है कि जब सूचना किसी तीसरे व्यक्ति से जुड़ी हो, तो सूचना अधिकारी उसे देने से पहले उस व्यक्ति की इजाजत लेगा। कुछ साल पहले हाईकोर्ट के एक जज ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को चिट्ठी लिख कर खुद को प्रभावित किए जाने की कोशिश की जानकारी दी थी। कोर्ट ने यह माना है कि ऐसी जानकारी धारा 11 के तहत आती है। चिट्ठी भेजने वाले जज की अनुमति के बिना उसकी जानकारी किसी को नहीं दी जा सकती।

उसी तरह कॉलिजियम ने बतौर जज किसी व्यक्ति की नियुक्ति से क्यों मना किया, इसकी जानकारी भी सेक्शन 11 के तहत आ सकती है। क्योंकि जिसका नाम खारिज किया गया, उसका आधार क्या था, इसकी जानकारी देने से व्यक्ति की निजता प्रभावित हो सकती है। उसके सम्मान को भी चोट पहुंच सकती है।

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