जाने CJI चंद्रचूड के वो फ़ैसले जिनमें पिता के ख़िलाफ़ गए।

जाने CJI चंद्रचूड के वो फ़ैसले जिनमें पिता के ख़िलाफ़ गए।

असहमति को लोकतंत्र का रक्षा कवच बताने वाले जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ देश के 50 में चीफ जस्टिस होंगे। मुख्य न्यायाधीश और अदालत को न्यायाधीश संवैधानिक पद है ना कि पदानुक्रम है। उन्हें उदारवादी सोच का संरक्षक कहा जाता है, और वह अपनी सोच से समाज और देश की बहुतायत आबादी को न्याय उपलब्ध कराने की मंशा रखते हैं। यही वजह है कि कई संवैधानिक बेंचों के फैसलों में उनकी राय अपने साथी जजों से अलग रही है, क्योंकि वह कहते हैं कि लोकतंत्र में असहमति सेफ्टी वाल्व का काम करती है। यही वजह है भीमा कोरेगांव, महिला शार्ट सर्विस कमीशन, सबरीमाला से लेकर अविवाहितों को २४ माह के गर्भपात कराने के अधिकार सरीखे फैसले उन्हें लीख से अलग करते हैं।

सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ के पुत्र जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा दिल्ली यूनिवर्सिटी से पूरी की। उन्होंने हावर्ड यूनिवर्सिटी से उन्होंने मास्टर की डिग्री ली। न्यायिक विज्ञान में उन्होंने दक्षता हासिल की है, अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद से वह देश- विदेश में भी कई कानूनी स्कूलों में कानून व न्याय व्यवस्था संबंधी विषय पर अपने विचार रखते हैं। इसके चलते उन्हें देश नहीं विदेश में भी न्याय क्षेत्र के दिग्गजों में शुमार किया जाता है। लोकतंत्र के इतिहास में वह ऐसे पुत्र हैं, जिन्होंने 37 साल के बाद अपने पिता जो कि सबसे लंबे समय तक देश के चीफ जस्टिस रहें हैं के ऐतिहासिक फैसलों को बदल दिया।चंद्रचूड़ निष्पक्षता और पारदर्शिता को न्याय प्रणाली के लिए अहम मानते हैं और अपने पिता के व्यभिचार और मौलिक अधिकार पर दिए गए फैसले को उन्होंने पलट दिया। उनके पिता ने हमें इमरजेंसी के दौरान मौलिक अधिकारों को रद्द करने का फैसला सुनाया था। जिसे 2017 में 9 जजों की बेंच ने पलट दिया और न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड़ जो इस बेंच में थे, टिप्पणी करते हुए कहा था कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है। बेंच ने 40 साल पुराने आदेश को गंभीर और सिरे से नाकार दिया। उन्होंने बेंच में असहमति जताने वाले एकमात्र जज एसएस खन्ना की उनके विचारों के लिए प्रशंसा भी की।

इसी तरह अपने पिता के एडल्टरी से जुड़े दूसरे मामले में २०१८ में पलट दिया। उनके पिता का फैसला था इसमें एडल्टरी को असंवैधानिक माना गया था, अर्थात जब कोई महिला किसी अन्य पुरुष से संबंध बनाती है, तो पहले के कानून के मुताबिक संबंध बनाने वाले पुरुष के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर सकता है, लेकिन महिला के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती थी। इस कानून को निरस्त करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। जिसमें तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में यह फैसला सुनाया था कि भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को असंवैधानिक करार दिया गया था इसमें कहा गया कि एडल्टरी अब अपराध नहीं केवल तलाक का आधार हो सकता है। उनसे सुनाएं कुछ फैसलों ने उन्हें न्यायपालिका में अलग स्थान दिया है। इसने उन्हें सुप्रीमकोर्ट का लोकप्रिय न्यायवादी और पारदर्शी चेहरे के रूप में स्थापित किया, जो भारतीय संविधान को ऐतिहासिक और संवैधानिक दृष्टि से महत्वपूर्ण और अहम दस्तावेज मानते हैं। उनका कार्यकाल 2 साल का होगा।

 

उन्हें बदलाव और आधुनिक तौर-तरीके के साथ तर्क के साथ न्यायसंगत फैसला करने में महारत हासिल है। क्योंकि बतौर सुप्रीम कोर्ट जस्टिस उनके सुनाए फैसलों ने उनकी यशस्वी तस्वीर पेश की है। यही वजह है कि समलैंगिकता पर दिए गए ऐतिहासिक फैसले को उन्होंने साफ तौर पर कहा था कि सेक्शन 377 को करना समय की मांग है, और यह किसी तरह के अपराध की श्रेणी में नहीं आता है। उन्होंने कहा था कि ऐसे लोगों को भी समानता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, जीवन और निजता के साथ रहने का अधिकार है। उन्होंने कहा सेक्शन 377 में मैकाले की विरासत है। ऐसे लोगों को उनके अनुसार जीने का अधिकार मिलना ही चाहिए।

इसी तरह से महिलाओं को लेकर उदारवादी दृष्टिकोण अपनाने वाले जस्टिस चंद्रचूड़ का फैसला, उन्होंने विवाहितों के समान ही अविवाहित महिलाओं को भी गर्भधारण करने के 24 हफ्ते के अंदर गर्भपात करने का अधिकार दिलवाया। इसमें तर्क दिया गया कि अविवाहित महिला को भी अधिकार है वह किसके बच्चे की मां बनना चाहती है, और नहीं और वह अपनी मर्जी से गर्भपात का रास्ता चुन सकती है। इस क्रम में उनके सुनाए फैसले वन रैंक वन पेंशन काफी चर्चित रहे हैं और उसने केंद्र सरकार की पेशानी पर बल डाला है। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट वन पेंशन वन रैंक बरकरार रखा था। इस पर फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा था कि 7 नवंबर 2015 को जारी की गई अधिसूचना और उसके सिद्धांत में कोई असंवैधानिक कमजोरी नहीं है। इसके अलावा जस्टिस चंद्रचूड़ ने अयोध्या मंदिर विवाद का फैसला करने वाली 5 जजों की बेंच का भी हिस्सा रहे हैं। उस समय के तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के अध्यक्षता में गठित बेंच में जस्टिस जसबीर जस्सी, डीवाई चंद्रचूड़ जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नजीर शामिल थे। वहीं जस्टिस चंद्रचूड़ ने आधार के मामले में भी अपनी राय को विपरीत रखते हुए कहा था कि 12 अंक किसी व्यक्ति की पहचान नहीं हो सकते।

सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश को अनुमति देने वाली बेंच में भी वह शामिल थे। नोएडा में अवैध ट्विन टावर को गिराए जाने वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच में भी वह शामिल रहे हैं। महिला अधिकारों को लेकर मुखर रहने वाले चंद्रचूड़ ने केरल में 25 वर्षीय हिंदू युवती अखिला जिसने शफीन नाम के मुस्लिम लड़के के साथ विवाह कर लिया था और अपना नाम हदिया रख लिया थे के मामले में भी हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया और दोनों को वैवाहिक जीवन बिताने की अनुमति देकर कहा था कि, विवाह किसी भी व्यक्ति का अधिकार है। उसे अपनी तरह से विवाह करने और रहने का हक है, अदालतों की बेंच पर उनके विपरीत विचार उनके सहमत विचारों की समान ही काफी तथ्यपरक और प्रभावी रहे हैं। वह समाज, राजनीति और धर्म में स्थापित मान्यताओं और विचारों की जांच पर सवाल करते हैं और एक नए दृष्टिकोण को पेश करते हैं। चंद्रचूड़ सुधार की आशा को गति देने वाले माना जाता है।

उनके अनुसार 1 दिन के लिए भी स्वतंत्र से वंचित होना बहुत अधिक है। यही वजह है कि देश भर की जेलों में बंद विचारधीन कैदियाों की दिन पर दिन की बढ़ती आबादी और दुर्दशा को लेकर भी वह अपनी चिंताओं से अवगत करा चुके हैं। भीमा कोरेगांव मामले में गिरफ्तार किए गए 5 कार्यकर्ता के अधिकारों को बरकरार रखते हुए केवल वह ही एक मात्र ऐसे थे, जिनकी राय बेंच से विपरीत थी। उन्होंने न्यायपालिका को याद दिलाया कि अनुमानों की बेदी पर असहमति की बलि नहीं दी जा सकती। उन्होंने लिखा था विरोध एक जीवंत लोकतंत्र का प्रतीक है। अलोकप्रिय कारणों को उठाने वालों को सता कर विपक्ष की आवाज को दबाया नहीं जा सकता । इसके अलावा उनके द्वारा भारत के मुख्य न्यायाधीश के कार्यालय को सूचना के अधिकार में लाना और उनके द्वारा की गई घोषणा की जल्द ही अदालतों में आरटीआई आवेदनों से निपटने के लिए ऑनलाइन मंच की स्थापना होगी ऐसे फैसले हैं, जो उनकी दूरदर्शी सोच को प्रदर्शित करते हैं।

वहीं महिलाओं के शार्ट सर्विस कमीशन को लेकर दिए गए फैसले में सरकार की अनिच्छा की आलोचना करते हुए उन्होंने विचार को खारिज कर दिया। इसमें कहा गया था कि महिलाएं शारीरिक रूप से पुरुषों की तुलना में कमजोर हैं। वह उस बेंच का भी हिस्सा रहे हैं, जिसमें राज्यों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए दिशानिर्देश तैयार किए थे। कोरोना काल के दौरान न्यायिक कार्यों में प्रौद्योगिकी को अपनाने के लिए उन्होंने नई मिसाल कायम की थी। वह उस समिति के अध्यक्ष थे जिसे यह फैसला करना था कि अदालता कैसे ऑनलाइन काम करेंगी, लिहाजा उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय में तमाम प्रयोग किए। इसमें उन्होंने अपनी अध्यक्षता वाली संविधानिक पीठ को कागज रहित घोषित किया। साथ ही अदालती कार्रवाई को लाइव स्ट्रीम करने के लिए सहमति व्यक्त की और इसे साकार कर दिया। मौजूदा समय में सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही को लाइव स्ट्रीमिंग के माध्यम से देखा जा सकता है।जस्टिस चंद्रचूड़ की सोच नागरिकों को अदालतों की कार्रवाई के बारे में जानने का अधिकार है। बॉक्स…. कहा जा रहा है जस्टिस चंद्रचूड़ की साफगोई, निष्पक्षता और स्पष्टवादिता विधायिका की पेशानी पर बल डाल सकती है। इसमें कुछ फैसले हैं जो आने वाले समय में न्यायपालिका की नई तस्वीर पेश कर सकते हैं।यह फैसले हैं अनुच्छेद 370 का रद्दीकरण, नागरिकता संशोधन अधिनिय की वैधता और चुनावी बांड। बॉक्स….. सुप्रीम कोर्ट में 50 वें चीफ जस्टिस बने जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ 37 साल के बाद उस पद पर पहुंचेंगे, जिसे सबसे लंबे कार्यकाल में उनके पिता जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ ने सुशोभित किया था वह 1978 से 1985 तक चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रहे थे। सबसे लंबी अवधि 7 साल तक भारत के चीफ जस्टिस रहने वाले जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ अब तक के सबसे लंबे कार्यकाल वाले मुख्य न्यायधीश रहे हैं। इस कड़ी में अगला नाम जस्टिस बीवी नागरत्ना का है जो कि देश की पहली महिला सीजीआई बनेगी 2027 में इनका कार्यकाल शुरु होगा। महिला सीजीआई बनने वाली नागरत्ना के पिता जस्टिस सीएस वेंकटरमैया भी 1989 में चीफ जस्टिस रहे हैं। इस तरह से भारतीय न्यायपालिका इतिहास के लिए यह पहला मौका होगा जब दूसरी पीढ़ी में बेटी पिता की राह पर आगे बढ़ेगी।

इसी क्रम में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के चाचा भी सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रह चुके हैं। 14 महीने देश के चीफ जस्टिस से उनके चाचा रंगनाथ मिश्रा भी सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रहे हैं, और 25 दिसंबर 1990 से 24 नवंबर 1951 तक सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रहे। 2017 में अगस्त के महीने में दीपक मिश्रा देश के 45 में चीफ जस्टिस बने देवी 14 महीने तक देश के चीफ जस्टिस रहे।

 

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