बांग्लादेश में हिंदू बेहाल:हिंदुओं के घर और दुर्गा पंडाल ही नहीं तोड़े जानवर भी चुरा ले गए,

जानिए खौफ के 5 दिनों की कहानी

दुर्गा पूजा पर बांग्लादेश में हिंदुओं पर हुए हमले के मामले में मंगलवार को PM शेख हसीना ने सख्त कार्रवाई के आदेश दिए हैं। बांग्लादेश में 13 से 17 अक्टूबर के बीच बड़े पैमाने पर हिंसा हुई। दुर्गा पंडाल तोड़े गए। हिंदुओं के घर जलाए गए। हिंदुओं पर हमले किए गए। हिंसा अब भी पूरी तरह से बंद नहीं हुई है।

इस बीच बांग्लादेश के जानेमाने वकील, फ्रीडम फाइटर और बांग्लादेश हिंदू बुद्धस्ट, क्रिश्चियन काउंसिल के जनरल सेक्रेटरी राणा दासगुप्ता और जिन इलाकों में हिंसा हुई है,
पहली कहानी टिपू के मुताबिक, जिनकी उम्र 28 साल है, बंगाली हिंदू परिवार से ताल्लुक रखते हैं…
13 अक्टूबर की बात है। अलसुबह से ही सोशल मीडिया पर एक मैसेज तेजी से वायरल हुआ कि, कोमिल्ला शहर के नानुआ दिघिर पर पूजा मंडप में पवित्र कुरान का अपमान हुआ है। सब इकट्‌ठा हों और इसका विरोध करें। देखते ही देखते हिंसा की खबरें आने लगीं।

“मैं चिटगोंग में रहता हूं। मैंने अपनी 28 साल की उम्र में अभी तक ऐसी हिंसा नहीं देखी थी। मेरे घर के आसपास तो सब शांत था, लेकिन सिटी में हिंदुओं के घर, दुकानों पर हमले हो रहे थे।

हमला करने वालों को जो मिला, वो ले गए। मंदिरों को तोड़ा जाने लगा। घरों पर पत्थर फेंके जाने लगे। पैसा, मवेशी जो भी उन्हें दिखा वे ले गए।”

“सरकार कह रही थी कि, हम स्थिति को कंट्रोल कर रहे हैं लेकिन ग्राउंड पर हालात एकदम उलटे थे। हिंदू होने के चलते हम भी बहुत डर गए। हमे लगा कि कहीं हिंसा हमारे घर तक न आ जाए। ​​​​नोआखाली इलाके में मेरे दोस्त रहते हैं। उनके घरों पर हमले हुए। उनके कई रिश्तेदारों को रातों-रात घर छोड़कर भागना पड़ा। अभी बांग्लादेश में रहने वाले हिंदू बहुत डरे हुए हैं। कई दर्दनाक जीवन जीने पर मजबूर हैं। हम पूरी तरह से असुरक्षित महसूस कर रहे हैं, लेकिन हम में से कोई भी बांग्लादेश छोड़ना नहीं चाहता क्योंकि यह हमारी मातृभूमि है और हम बांग्लादेशी है। हम यहीं सम्मान और सुरक्षा के साथ जीना चाहते हैं।”

“यहां हिंदुओं को सरकार के सिस्टम से कोई दिक्कत नहीं है। कई इलाकों में पुलिस ने तुरंत स्थिति को नियंत्रण में भी लिया, लेकिन हमें कम्युनल फोर्सेज से खतरा है। यहां हालात अब भी सामान्य नहीं हुए हैं। आज ही न्यूजपेपर में खबर आई है कि हिंसा करने वालों को पहचान लिया गया है, लेकिन अभी तक उन्हें सलाखों के पीछे नहीं डाला गया। हम डर और दहशत में हैं।”

दूसरी कहानी राणा दासगुप्ता के मुताबिक, जो बांग्लादेश के जानेमाने वकील हैं

“बांग्लादेश में अभी जो हालात हैं, वो उसे मौजूदा अफगानिस्तान की तरह बनने की तरफ ले जा रहे हैं। मैं फ्रीडम फाइटर हूं। वकील हूं। हिंदू बुद्धस्ट, क्रिश्चियन काउंसिल का जनरल सेक्रेटरी हूं। जब मैं इतना डरा हुआ हूं तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि यहां रहने वाले एक आम हिंदू के मन में किस तरह की दहशत होगी। ये जो मौजूदा घटना हुई है, ये हिंदुओं को देश से भगाने का बहुत बड़ा षड़यंत्र है। कम्युनल फोर्सेज नहीं चाहती कि अल्पसंख्यक इस देश में रहें।”

“ये बातें आंकड़ों से साबित हो रही हैं। पाकिस्तान बनने के समय हिंदूओं की पॉपुलेशन 29.7% थी। बांग्लादेश बनने के समय यह 20% के आसपास आ गई थी और अब यह 9% के करीब ही रह गई है। जब बांग्लादेश बना, तब पाकिस्तानी सेना ने बड़े पैमाने पर हिंदुओं को कुचला और भगाया। बांग्लादेश के संविधान में धर्मनिरपेक्ष शब्द जोड़ा गया था, लेकिन साल 1977 में जिया-उर-रहमान की सैन्य तानाशाही के दौरान एक मार्शल लॉ निर्देश द्वारा सेक्युलरिज्म (धर्मनिरपेक्षता) को संविधान से हटा दिया गया।”

1988 में हुसैन मुहम्मद इरशाद की अध्यक्षता में बांग्लादेश में इस्लाम को राज्य धर्म के रूप में अपनाया गया। “धर्मनिरपेक्षता” को “सर्वशक्तिमान अल्लाह में पूर्ण विश्वास” के साथ बदल दिया गया। ​​​​​​

कम्युनल फोर्सेज सरकार के अंदर और बाहर दोनों जगह की काम कर रही हैं। मौजूदा समय में अल्पसंख्यकों में किसी भी लीडर को लेकर कॉन्फिडेंस नहीं है। यदि सरकार ने माइनोरिटी को नहीं बचाया तो बांग्लादेश बहुत जल्दी मौजूदा अफगानिस्तान बन जाएगा। दुर्भाग्य की बात ये है कि अभी जो हिंसा हो रही है उसमें सरकार के भी कई नेता नजर आ रहे हैं।

कम्युनल फोर्सेज सालों से इस कोशिश में हैं कि बांग्लादेश को पाकिस्तान की तरह बना दिया जाए। यहां अल्पसंख्यकों में हिंदू ही बहुसंख्यक हैं, इसलिए सबसे ज्यादा हमले भी हिंदूओं को ही झ़ेलने पड़ रहे हैं। सरकार की अब तक की कोशिशें हमे बचाने में नाकाफी हैं।

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