गरीबी कम करने का जिनपिंग प्लान, अमीरों की संपत्ति गरीबों में बांट रहा चीन?

जानें दुनिया पर इसका क्या होगा असर?

चीन में लग्जरी ब्रांड्स बनाने और बिक्री करने वाली बड़ी कंपनियों पर खतरा मंडरा रहा है। इसके पीछे चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के कॉमन प्रॉस्पेरिटी प्रोग्राम को जिम्मेदार बताया जा रहा है। चीनी राष्ट्रपति इस प्रोग्राम के जरिए देश में मौजूद आर्थिक असमानता को दूर करने की कोशिश कर रहे हैं। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए हाल ही में चीन ने बड़ी कंपनियों पर कई आर्थिक प्रतिबंध भी लगाए हैं और कार्रवाई भी की है।

समझते हैं, चीन का कॉमन प्रॉस्पेरिटी प्रोग्राम क्या है? बड़ी-बड़ी कंपनियों के जरिए दुनियाभर की अर्थव्यवस्था के केंद्र में आया चीन अब क्यों उन कंपनियों पर सख्ती कर रहा है? इन नीति के तहत चीन ने क्या-क्या कदम उठा है? इन कदमों से चीन की कंपनियों को क्या नुकसान उठाना पड़ा है? और दुनिया में चीन के इस कदम का क्या असर होगा?…

चीन का ये प्रोग्राम है क्या?

आसान भाषा में समझें तो चीन का कॉमन प्रोस्पेरिटी प्रोग्राम अमीर और गरीब के बीच की खाई को कम करने का प्लान है। चीन इसे एक समाजवादी विचार के तौर पर प्रमोट कर रहा है, जिसका लक्ष्य संपत्ति और पैसों को ज्यादा से ज्यादा लोगों के बीच बांटना है। चीन का कहना है कि वो ज्यादा आय वाले लोगों और संस्थानों को प्रेरित कर रहा है कि वे समाज से कमा रहे हैं, तो उसे वापस भी लौटाए। इससे समाज में अमीर-गरीब की खाई कम होगी और आय/संपत्ति का बंटवारा समाज के सभी तबकों में होगा।

हालांकि, चीन की ये नीति नई नहीं है। 1950 के दशक में माओत्से तुंग भी ने सबसे पहले कॉमन प्रॉस्पेरिटी के विचार पर काम करना शुरू किया था।

इस प्रोग्राम पर क्यों काम कर रहा है चीन?

दरअसल, सांस्कतिक क्रांति के बाद चीन ने अपनी अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए बड़े-बड़े बदलाव किए थे। इन बदलावों का फायदा ये हुआ कि चीन की अर्थव्यवस्था ने रफ्तार पकड़ी, लेकिन साथ ही साथ अमीर-गरीब के बीच की खाई भी बढ़ती गई। इस वजह से चीन का सामाजिक तानाबाना गड़बड़ होने लगा और चीन को दोबारा इस नीति पर काम करना शुरू करना पड़ा।

साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट के मुताबिक, कॉमन प्रॉस्पेरिटी राष्ट्रपति जिनपिंग के लॉन्ग टर्म विजन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। उन्होंने 2 लॉन्ग टर्म गोल निर्धारित कर रखे हैं। पहला – 2035 तक सभी जरूरी सार्वजनिक सेवाओं को सभी लोगों के लिए समान रूप से उपलब्ध कराना और दूसरा – 2050 तक अमीर-गरीब की आय के बीच अंतर को ‘उचित सीमा’ तक कम करना।

चीन इस प्लान को पूरा करने के लिए क्या कदम उठा रहा है?

शहीद भगत सिंह कॉलेज, दिल्ली यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. ऋत्युषा मणि तिवारी के मुताबिक, चीन इस प्रोग्राम को पूरा करने के लिए 3 तरह के कदम उठा रहा है।

पहला – चीन अमीरों पर ज्यादा टैक्स लगाकर उस पैसे का बंटवारा मध्य और निम्न वर्ग की आय को बढ़ाने के लिए कर रहा है। दूसरा – बड़ी और ज्यादा कमाई वाली कंपनियों को कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी के तहत लोगों और संस्थानों को प्रेरित कर रहा है कि वे ज्यादा से ज्यादा डोनेशन और चैरिटी करें। तीसरा – नियम-कानून बनाकर इनकम के डिस्ट्रीब्यूशन को कंट्रोल कर रहा है।

चीन के इन कदमों का नुकसान उठा रही है बड़ी कंपनियां

चीन अपने इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए बड़ी कंपनियों पर सख्त कदम उठा रहा है।

चीन ने पिछले साल अक्टूबर में जेक मा की कंपनी अलीबाबा की पार्टनर फर्म एंट ग्रुप को IPO लाने से रोक दिया था। कंपनी पर 2.8 बिलियन डॉलर का फाइन भी लगाया गया था। बीच में कई दिनों तक जब जेक मा सार्वजनिक जगहों पर दिखाई नहीं दिए थे तब खबरें थीं कि चीन ने जेक मा को हाउस अरेस्ट कर लिया है।चीनी सरकार ने एजुकेशन कंपनियों पर भी सख्ती की। कहा गया कि एजुकेशन कंपनियां पूरी तरह नॉन प्रॉफिट बेसिस पर ऑपरेट होंगी। इसका नतीजा ये हुआ कि टेकएजु नाम की ऑनलाइन एजुकेशन कंपनी को बहुत ज्यादा घाटा हुआ। कंपनी के मालिक लेरी चेन जो कभी दुनिया के अमीर लोगों में शुमार थे वे अमीरों की लिस्ट से बाहर हो गए।चीन की व्हीकल हायरिंग कंपनी डीडी ने 30 जून को खुद को न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में लिस्ट किया था। कंपनी ने निवेशकों से 4.4 बिलियन डॉलर जुटाए थे। दो दिन बाद ही चीनी सरकार ने कंपनी पर यूजर डेटा कलेक्शन के उल्लंघन के आरोपों पर जांच बैठा दी।चीन टिकटॉक की पेरेंट कंपनी बाइटडांस, वीबो जैसे कई दिग्गज कंपनियों को भी टार्गेट कर चुका है।

चीन के इस कदम से दुनिया को क्या खतरा?

चीन के इस कदम से दुनियाभर की लग्जरी आइटम बनाने वाली कंपनियों पर बुरा असर पड़ रहा है। लोग अपनी इनकम को छुपाने के लिए लग्जरी ब्रांड के प्रोडक्ट के बजाय सस्ते प्रोडक्ट खरीद रहे हैं। वैश्विक स्तर पर लग्जरी सामान की खपत के मामले में दुनिया में चीन की हिस्सेदारी लगभग 50 फीसदी है।चीन की सरकार कंपनियों पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए उनमें सरकारी निवेश कर रही है, ताकि बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स और महत्वपूर्ण पदों पर सरकारी लोग नियुक्त किए जा सकें। इससे कंपनियों की स्वायत्ता पर खतरा पैदा हो रहा है।एक्सपर्ट्स का मानना है कि यह चीनी सरकार का नया तरीका जिससे वह देश में ट्रेड और सोसायटी पर ज्यादा कंट्रोल कर सकेगी।

डॉ. मणि तिवारी कहती हैं कि चीन अगर इस प्रोग्राम के तहत प्रॉपर्टी और इन्हेरिटेंस टैक्स को लागू करता है, तो इसका पूरी दुनिया पर असर पड़ेगा। भारत जैसे विकासशील देशों में पर चीन के इस कदम का बहुत ज्यादा असर नहीं पडे़गा। भारत का चीन को एक्सपोर्ट बढ़ेगा, क्योंकि चीन चाहता है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था भी विकसित हो। इसके लिए उसे ग्रामीण इलाकों में लोगों की आय बढ़ानी होगी जिससे कि कन्जम्पशन बढ़े। अगर ऐसा होता है तो प्रोडक्ट्स की डिमांड बढ़ेगी इससे रीजनल ट्रेड बढ़ेगा। साथ ही भारत के ज्यादा कोई लग्जरी ब्रांड्स चीन में नहीं हैं इसलिए भी भारत पर ज्यादा असर नहीं होगा। इसके उलट पश्चिमी देशों की मल्टीनेशनल कंपनियां ज्यादातर लग्जरी ब्रांड्स ही बेचते हैं, इसलिए उन पर चीन के इस कदम का ज्यादा असर होगा।

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