विपक्ष और SC के सवालों से घिरी केंद्र की वैक्सीन पॉलिसी, इस महिने में हो सकता है बदलाव

नई दिल्ली. केंद्र सरकार की टीकाकरण नीति राजनीतिक विरोध और सुप्रीम कोर्ट की निगरानी का सामना कर रही है. ऐसे में खबर है कि सरकार जुलाई या अगस्त में वैक्सीन सप्लाई बेहतर होने बाद नीति पर फिर से विचार कर सकती है. विपक्षी दलों के शासन वाले लगभग सभी राज्यों ने एक साथ केंद्र को घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार में वैक्सीन की कमी का हवाला देते हुए पहले ही तरह केंद्रीकृत तरीके से वैक्सीनेशन प्रोग्राम चलाने की अपील की है. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने भी नीति पर कई सवाल उठाते हुए केंद्र सरकार से 2 हफ्तों में हलफनामा दाखिल करने के लिए कहा है. मामले पर इस महीने के अंत में सुनवाई होगी.

न्यूज18 से बातचतीत में सरकारी अधिकारियों ने बताया है कि सरकार पुराने मॉडल को अपनाने पर विचार कर रही है. तब केंद्र ही राज्य सरकारों के लिए वैक्सीन खरीद रही थी और अब 45 साल और 18-44 साल के दोनों आयुवर्गों के लिए ऐसा ही करने पर विचार जारी है. गोपनियता की शर्त पर केंद्र सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने  बताया, ‘अभी तक कुछ भी तय नहीं किया गया है, लेकिन नौकरशाहों के स्तर पर इसकी बातचीत शुरू हो गई है.’

उन्होंने जानकारी दी, ‘केंद्र पहले ही 18-44 आयुवर्ग के लिए वैक्सीन आवंटित करने का फैसला कर चुका है, लेकिन राज्य सरकारों को इसकी कीमत चुकानी होगी, केंद्र को नहीं. बड़ा मुद्दा यह है कि ज्यादातर राज्य 45 साल से ज्यादा की उम्र वालों की तरह ही इन्हें भी मुफ्त में चाहते हैं.’ उम्मीद की जा रही है कि निजी अस्पतालों को होने वाली तय सप्लाई पर में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा.

कई राज्यों में वैक्सीन की कमी के चलते 18-44 आयुवर्ग का टीकाकरण रुक गया है. महाराष्ट्र और कांग्रेस शासित तीन राज्यों के अलावा ओडिशा में मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने दो दिन पहले केंद्र से 18-44 आयुवर्ग के लिए वैक्सीन खरीदने के लिए कहा है. उन्होंने ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल से भी इसके संबंध में बात की है.

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी ने केरल के सीएम पिनराई विजयन को गुरुवार को पत्र लिखा है. उन्होंने कहा है कि यह इस वक्त की जरूरत है कि केंद्र खुद ‘पहले की तरह वैक्सीनेशन ड्राइव की जिम्मेदारी ले.’ उन्होंने मुख्यमंत्रियों से एक सुर में बोलने की अपील की है.

क्या होगा अगर नीति में बदलाव हुए?

अगर नीति बदलती है, तो मुद्दा यह उठेगा कि क्या केंद्र राज्य सरकारों को दी जाने वाली सप्लाई के साथ-साथ 18-44 के आयुवर्ग की वैक्सीन का खर्च उठाएगा. खास बात है कि कई राज्यों ने 18-44 आयुवर्ग के लिए वैक्सीन निर्मातों को भुगतान कर दिया है. उम्मीद की जा रही है कि वैक्सीन की सप्लाई जून में हो सकती है.

केंद्र अब तक केवल 45 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को मुफ्त में टीका उपलब्ध करा रहा था. यह टीके केंद्र ने निर्माताओं से 157 रुपये प्रति डोज की दर से खरीदे ते. जबकि, राज्यों ने सीरम इंस्टीट्यूट को 18-44 वर्ग के लिए 300-400 रुपये प्रति डोज दिए हैं. एक अधिकारी का कहना है कि राज्यों से बातचीत के बाद बीच का रास्ता निकल सकता है, जहां राज्यों को 18-44 वर्ग के लिए वैक्सीन रियायती कीमतों पर उपलब्ध हो पाएंगी. यह वही कीमत होगी, जो केंद्र वैक्सीन निर्माताओं को चुकाता है.

राजस्थान के एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘यह मनमाना और अन्ययापूर्ण होगा क्योंकि केंद्र एक वर्ग को मुफ्त वैक्सीन देते हुए हम से दूसरे वर्ग के लिए कीमत नहीं ले सकता. केंद्र के पास 35 हजार करोड़ रुपये का बजट वैक्सीन के लिए है.’ राज्यों की तरफ से जारी किए गए ग्लोबल टेंडर्स पर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है और उन्हें अभी तक देश में तैयार हो रही वैक्सीन का 25 फीसदी कोटा मिल रहा है. इस आयुवर्ग के बीच उठी बड़ी मांग के चलते यह कोटा पर्याप्त साबित नहीं हो रहा है.

नीति आयोग के सदस्य वीके पॉल की तरफ से जारी बयान में सरकार ने कहा है कि राज्यों की तरफ से जारी किए गए ग्लोबल टेंडर्स काफी असफल रहे हैं, क्योंकि विदेशों से वैक्सीन की पर्याप्त सप्लाई उपलब्ध नहीं है. बयान के अनुसार, अप्रैल तक केंद्र ने अच्छा टीकाकरण कार्यक्रम चलाया था, लेकिन राज्य सरकारों की तरफ से लगातार बढ़ते दबाव को देखते हुए 18-44 आयुवर्ग के लिए प्रोग्राम शुरू करने के साथ राज्यों को सीधे निर्माता से खरीद की आजादी दी गई थी. बयान में एक तरीके से यह माना गया है कि राज्यों को सीधे निर्माताओं से वैक्सीन खरीदने देने के फैसले के अच्छे परिणाम नहीं मिले.

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