क्या आपको भी मिले है परीक्षा में 100 में से 102 नंबर? अगर नहीं तो हैरान कर देगी आपको CCSU की ये खबर

चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय (CCSU), मेरठ ने एक बार फिर खुद को विवादों में घेर लिया है। एमए होम साइंस की परीक्षा के रिजल्ट में ऐसी गड़बड़ी सामने आई है, जिसने विश्वविद्यालय की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। 100 अंकों की परीक्षा में छात्राओं को 102 और 103 अंक दे दिए गए, जिससे छात्रों में भ्रम की स्थिति पैदा हो गई है। यह घटना न केवल शिक्षा जगत की साख को धूमिल करती है, बल्कि इससे छात्रों के करियर पर भी प्रभाव पड़ सकता है।

100 नंबर की परीक्षा में आए 103 अंक!

एमए होम साइंस की छात्रा रहतनुमा को “फूड साइंस” प्रैक्टिकल विषय में 70 में से 78 नंबर और 30 में से 24 नंबर देकर कुल 102 अंक दे दिए गए। इसी तरह छात्रा छवि को उसी विषय में 70 में से 79 और 30 में से 24 नंबर यानी कुल 103 अंक दिए गए, जबकि परीक्षा 100 अंकों की थी। यह न केवल तकनीकी त्रुटि है, बल्कि इससे छात्रों की मानसिक स्थिति पर भी प्रभाव पड़ा है।

छात्राओं में रोष, विश्वविद्यालय के चक्कर काट रही छात्राएं

रिजल्ट आने के बाद कई छात्राएं भ्रमित और तनावग्रस्त हो गईं। उन्हें अपने अंकों पर भरोसा नहीं हो रहा था और वे बार-बार विश्वविद्यालय के चक्कर काट रही हैं। ये केवल दो छात्राओं का मामला नहीं है, बल्कि कई अन्य छात्राओं के साथ भी यही त्रुटि हुई है। छात्रों ने इस लापरवाही को विश्वविद्यालय प्रशासन की गंभीर चूक बताया है।

छात्र नेता शान मोहम्मद ने कुलपति से की शिकायत

इस मुद्दे को छात्र नेता शान मोहम्मद ने प्रमुखता से उठाया और कुलपति प्रो. संगीता शुक्ला से शिकायत की। उन्होंने परीक्षा परिणाम जारी करने वाली कमेटी और मार्कशीट तैयार करने वाली कंपनी के खिलाफ जांच की मांग की है। शान मोहम्मद का कहना है कि, “यह छात्राओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ है। ऐसे रिजल्ट न केवल छात्रों को भ्रमित करते हैं, बल्कि विश्वविद्यालय की छवि को भी नुकसान पहुंचाते हैं।”

फॉर्मेट की त्रुटि से हुई गड़बड़ी

इस मामले पर जब छात्र कल्याण अधिष्ठाता प्रोफेसर भूपेंद्र राणा से पूछा गया तो उन्होंने स्पष्ट किया कि, “मूल्यांकनकर्ता के पास 100 अंकों वाला फॉर्मेट भेजा गया था, जबकि विषय 70+30 के कुल 100 अंक का था। इसी कारण अंकों की गड़बड़ी हुई।” उन्होंने कहा कि गलती को सुधार लिया गया है और संशोधित मार्कशीट जारी कर दी गई है।

प्रशासन की लापरवाही या सिस्टम की खामी?

यह मामला बताता है कि उच्च शिक्षा में तकनीकी और प्रशासनिक लापरवाहियां किस कदर छात्रों के भविष्य को प्रभावित कर सकती हैं। चाहे यह एक सामान्य त्रुटि रही हो या एक बड़ी खामी, इसने यह तो साफ कर दिया कि विश्वविद्यालय की परिणाम प्रणाली को और अधिक पारदर्शी और सटीक बनाने की आवश्यकता है। छात्रों और अभिभावकों को भरोसे में लेना अब विश्वविद्यालय प्रशासन की जिम्मेदारी है।

 

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