केंद्र सरकार नहीं चाहती जातिगत जनगणना, पर आखिर क्यों?

नीतीश और उद्धव की मांग को क्यों खारिज कर रही है मोदी सरकार?

केंद्र सरकार ने 23 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि वह अब सामाजिक-आर्थिक जातिगत जनगणना (SECC) नहीं कराएगी। पारंपरिक रूप से अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) की जनगणना अलग से होती है। यानी जनगणना 2021 से यह तो पता चलेगा कि SC और ST कितने हैं, पर OBC या अन्य जातियों की वास्तविक स्थिति सामने नहीं आएगी।

सवाल यह उठता है कि ऐसा क्या हुआ जो सरकार को सुप्रीम कोर्ट में एफिडेविट दाखिल कर यह कहना पड़ा? जब 2011 की जनगणना में SECC हुई थी, तो उसके आंकड़े अब तक जारी क्यों नहीं हो सके? बिहार, ओडिशा, महाराष्ट्र जैसे राज्य जब जातिगत जनगणना की मांग कर रहे हैं तो केंद्र सरकार ऐसा क्यों नहीं करना चाहती है? आइए इन सवालों के जवाब समझते हैं-

सरकार को सुप्रीम कोर्ट में एफिडेविट क्यों देना पड़ा?

दरअसल, महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में रिट पिटीशन लगाई है। इसमें केंद्र सरकार को बैकवर्ड क्लास ऑफ सिटीजंस (BCC) यानी पिछड़े वर्गों का डेटा कलेक्ट करने के निर्देश देने की मांग की गई है, ताकि जनगणना 2021 में ही ग्रामीण भारत में पिछड़े वर्ग के नागरिकों की सही-सही स्थिति सामने आ सके।इस पिटीशन में केंद्र सरकार से अदर बैकवर्ड क्लासेस (OBCs) पर SECC-2011 के दौरान जुटाए गए डेटा को सार्वजनिक करने की मांग भी की गई है।

केंद्र सरकार ने अपने एफिडेटिव में क्या कहा है?
उद्धव सरकार की पिटीशन पर केंद्र सरकार ने अपने एफिडेविट में तीन बातें कही हैं।

यह एक पॉलिसी डिसीजन है। अदालतों को यह अधिकार नहीं है कि वह सरकार को बताएं कि क्या पॉलिसी डिसीजन लेना चाहिए।जाति आधारित जनगणना कराना व्यवहारिक नहीं है।प्रशासनिक नजरिए से भी ऐसा करना बेहद मुश्किल है।

सरकार SECC-2011 के जातिगत आंकड़े जारी क्यों नहीं कर रही?

यह बेहद रोचक है कि सरकार 2011 की जनगणना के 10 साल बाद भी डेटा का एनालिसिस नहीं कर सकी है। 130 करोड़ भारतीयों का जो डेटा 2011 में जुटाया गया था, वह पांच साल तक सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण मंत्रालय के पास था।डेटा में कई तरह की गड़बड़ियां हैं। नीति आयोग के उस समय के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया के नेतृत्व में एक्सपर्ट कमेटी भी बनी थी। चूंकि कमेटी के अन्य सदस्यों का नाम तय नहीं हुआ और इस वजह से कभी मीटिंग ही नहीं हुई। इसलिए जनगणना में जुटाए आंकड़े जस के तस पड़े हैं।उन आंकड़ों के आधार पर कुछ भी नतीजे नहीं निकाले जा सकते। यानी सारी कवायद बेकार हो गई है।

किस तरह की गलतियां हैं, जनगणना 2011 के जातिगत आंकड़ों में?

कई तरह की। सबसे पहली तो यह कि जातिगत जनगणना करने से पहले जातियों की कोई रजिस्ट्री तैयार नहीं की गई थी। इसकी वजह से जनगणना में शामिल कर्मचारियों ने कई गलतियां कीं। उन्होंने एक ही जाति को दर्जनों अलग-अलग तरीकों से लिखा था।एक ही जाति या एक जैसी जातियों को लिखने का तरीका था ही नहीं। इस वजह से हुआ यह कि महाराष्ट्र में सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार SC, ST और OBC कैटेगरी में केवल 494 जातियां आती हैं, पर 2011 की जनगणना में यह संख्या बढ़कर 4,28,777 हो गई। यह एक ही जाति को अलग-अलग तरीके से लिखने की वजह से हुआ। 99% जातियों में 100-100 लोग ही गिने गए। अब इन्हें अलग करना और एक ही जाति के ग्रुप में रखना मुश्किल हो रहा है।राष्ट्रीय स्तर पर 1931 की अंतिम जातिगत जनगणना में जातियों की कुल संख्या 4,147 थी, SECC-2011 में 46 लाख विभिन्न जातियां दर्ज हुई हैं। चूंकि, देश में इतनी जातियां होना नामुमकिन है। सरकार ने कहा है कि संपूर्ण डेटा सेट खामियों से भरा हुआ है। इस वजह से रिजर्वेशन और पॉलिसी डिसीजन में इस डेटा का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।

क्या जाति जनगणना में केवल OBC गिने जाएंगे?

नहीं। 2011 की जातिगत जनगणना ने सभी जातियों पर डेटा एकत्र किया, केवल OBC का नहीं। हालांकि OBC प्रभुत्व वाले राजनीतिक दलों की मांग आम तौर पर OBC जातियों को शामिल करने के लिए SC और ST से जनगणना के सोश्यो-इकोनॉमिक मैपिंग के विस्तार पर ध्यान केंद्रित करती है। इसके लिए जरूरी है कि ऊंची जातियों को भी गिना जाए।

2021 की जनगणना में जातियों की गिनती क्यों नहीं हो सकती?
सरकार के पास कारणों की लंबी फेहरिस्त है-

जाति से जुड़े प्रश्न पूछे जाने पर लोग अपने कबीले/गोत्र, उपजाति और जाति के नाम बताने लगते हैं। मूल जाति अधिकांश लोगों को पता ही नहीं होती।इन्युमरेटर सरकारी कर्मचारी होते हैं, जो 6-7 दिन की ट्रेनिंग के बाद पार्टटाइम में जनगणना में भाग लेते हैं। वह जातियों को इन्वेस्टिगेट या वैरिफाई नहीं कर सकते।केंद्र और राज्य सरकार की सूचियों में अंतर है। कोई जाति किसी राज्य में SC है, तो जरूरी नहीं कि वह सभी राज्यों में SC ही होगी। वह ST या OBC भी हो सकती है।केंद्रीय सूची में 2,479 OBC जातियां हैं, वहीं सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सूची में 3,150 OBC जातियां हैं।जनगणना का काम 3-4 साल पहले शुरू हो जाता है। 2021 की जनगणना के लिए प्रश्नवाली पहले ही तैयार हो चुकी है। फील्ड टेस्ट भी हो गया है। उसमें बदलाव हुआ तो सभी कर्मचारियों को दोबारा ट्रेनिंग देनी होगी।अगर SC या ST को छोड़ दें तो सेंसस कमिश्नर के लिए OBC/BCC की गिनती करना संवैधानिक बाध्यता नहीं है।2014 में सुप्रीम कोर्ट ने ही मद्रास हाईकोर्ट के दो आदेश रद्द कर दिए थे, जिनमें केंद्र सरकार को जातिगत जनगणना का निर्देश दिया गया था।

जाति जनगणना की मांग क्यों और कौन कर रहा है?

उद्धव ठाकरे सरकार ने तो सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई ही है, इसके अलावा बिहार के CM नीतीश कुमार, झारखंड के CM हेमंत सोरेन और ओडिशा के CM नवीन पटनायक भी जाति जनगणना के पक्ष में हैं। भाजपा भी पार्टी के तौर पर इस मुद्दे के खिलाफ नहीं है। वह भी जातिगत जनगणना के विरोध में खड़ा नहीं दिखना चाहती। विपक्ष उस पर दबाव बनाता रहेगा और आगे OBC कोटा चुनावी मुद्दा भी बन सकता है।जहां तक जातिगत जनगणना को जायज ठहराने की बात है तो यह एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन चुका है। पार्टियां अलग-अलग राज्यों में विभिन्न समुदायों से रिजर्वेशन का वादा कर अपना विस्तार करना चाहती हैं। यह बात अलग है कि जातिगत आंकड़े न होने की वजह से बार-बार इस तरह के प्रयास नाकाम हो रहे हैं।विद्वानों का यह भी कहना है कि ऊंची जातियों में जाति-आधारित लाभ नहीं हैं। इससे वह ‘जातिविहीन’ दिखाई देती हैं। जब तक जाति की वजह से आए विशेषाधिकारों को खत्म कर ही हम जातिविहीन समाज की स्थापना कर सकेंगे, जहां सभी एक-समान होंगे। इन विशेषाधिकारों को खत्म करने के लिए सामाजिक-आर्थिक स्थिति के आधार पर मैपिंग करनी होगी, जिसके लिए जातिगत जनगणना बेहद जरूरी है।

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