बॉम्बे HC ने दुष्कर्म मामले के दो आरोपियों को किया बरी, कही ये बात

बॉम्बे हाईकोर्ट (High Court of Bombay) ने दो आरोपियों को ये कहते हुए बड़ी कर दिया कि पीड़िता की गवाही आरोपी को अपराधी ठहराने का भरोसा कायम नहीं करती है। बाल यौन अपराध संरक्षण (Poxo) अधिनियम के तहत यौन हमले की अपनी व्याख्या के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट की न्यायाधीश ने दो और मामलों में अपना फैसला दिया है। उन्होंने अपने फैसले में नाबालिग लड़कियों के साथ दुष्कर्म के दो आरोपियों को बरी कर दिया।

पॉक्सो अधिनियम के तहत नहीं आते ये स्थिति

हाल ही में न्यायमूर्ति पुष्पा गनेदीवाला ने अपने एक फैसले में 12 साल की लड़की के स्तन को छूने के आरोपी को यह कहते हुए बरी कर दिया था कि त्वचा से त्वचा का संपर्क नहीं हुआ था ऐसे में ये अपरध की उस क्षणी में नहीं आता है। वहीं न्यायमूर्ति गनेदीवाला ने एक अन्य फैसले में कहा कि पांच साल की बच्ची का हाथ पकड़ना और पैंट की जिप खोलना पॉक्सो अधिनियम के तहत यौन हमले के दायरे में नहीं आता।

इन मामलों के अलावा न्यायमूर्ति ने अपने दो फैसलों में नाबालिग लड़कियों के साथ दुष्कर्म के दो आरोपियों को बरी कर दिया था, न्यायमूर्ति ने कहा कि, पीड़िता की गवाही आरोपी को अपराधी ठहराने का भरोसा कायम नहीं करती है। इस मामले में पीड़िता की गवाही के स्तर को देखते हुए अपीलकर्ता को 10 साल के लिए सलाखों के पीछे भेजना घोर अन्याय होगा।

ट्रायल कोर्ट ने सुनाई थी 10 साल की सजा

दरअसल न्यायमूर्ति ने 15 जनवरी को 26 साल के सूरज कासरकर की ओर से दायर याचिका पर फैसला सुनाया है, जिसमें उसने 15 वर्ष की लड़की से रेप के आरोप को चुनौती दी थी, इस मामले में उसे ट्रायल कोर्ट ने 10 साल की सजा सुनाई थी।

सूरज कासरकर पर आरोप था कि जुलाई 2013 में लड़की घर में घुसा और नाबालिग लड़की से बलात्कार किया। वहीं आरोपी ने अपनी याचिका में यह दावा किया था कि वह और पीड़िता आपसी सहमति से संबंध में थे। उसने यह भी बताया कि लड़की की मां को जब इसके बारे में पता लगा तो उसके खिलाफ केस दर्ज कर दिया। मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस गनेदीवाला ने कहा कि लड़की ने ट्रायल कोर्ट में अपनी उम्र 18 साल बताई थी लेकिन उसकी मां ने एफआईआर में लड़की की उम्र 15 साल लिखवाई।

मेडिकल रिपोर्ट में नहीं हुई पुष्टि

न्यायमूर्ति ने कहा कि एक अकेले आदमी के लिए पीड़िता का मुंह बंद कर उसके और अपने कपड़े उतारकर बिना किसी झड़प के बलात्कार करना लगभग असंभव है। वहीं कोर्ट के आदेश में यह भी कहा गया है कि मेडिकल जांच के बाद मिले सबूत भी पीड़िता के केस के पक्ष में नहीं हैं। न्यायमूर्ति ने कहा कि अगर यह संबंध जबरन बनाए गए होते तो दोनों पक्षों में झड़प हुई होती। मेडिकल रिपोर्ट में दोनों के बीच ऐसी कोई झड़प की पुष्टि नहीं हुई है।

17 साल की लड़की से रेप का दोषी

बता दें कि इससे पहले न्यायमूर्ति ने 14 जनवरी को 27 वर्षीय जगेश्वर कावले की ओर से दायर याचिका पर फैसला सुनाया था। कावले को पोक्सो ऐक्ट और भारतीय दंड संहिता के तहत एक 17 साल की लड़की से रेप का दोषी पाया गया था और उसे 10 साल की सजा मिली थी। अभियोजन पक्ष का कहना था कि आरोपी पीड़ित लड़की को अपनी बहन के यहां ले गया और वहां 2 महीने तक उसके साथ कई बार संबंध बनाए। इस मामले में कोर्ट ने कहा कि पीड़िता के बयान के अलावा इस रेप केस को साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं है। वहीं हैरानी जताई गई कि कैसे घर के दूसरे सदस्यों ने बिना शादी के एक लड़के और लड़की को साथ सोने दिया।

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