क्या यूपी की बिजली भी बिकेगी? जानिए क्यों कर्मचारी देशभर में सड़कों पर उतरे ?

उत्तर प्रदेश में बिजली कंपनियों के निजीकरण की योजना का विरोध अब तेज़ हो गया है। सिर्फ यूपी ही नहीं, बल्कि देश के कई राज्यों में बिजली कर्मचारियों ने इसका विरोध किया है। उनका कहना है कि निजीकरण से न सिर्फ कर्मचारियों की नौकरी खतरे में पड़ेगी, बल्कि आम लोगों की बिजली सेवाएं भी महंगी और अस्थिर हो सकती हैं।

देशभर में विरोध प्रदर्शन

नेशनल कोऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ इलेक्ट्रिसिटी इंप्लाइज एंड इंजीनियर्स के बुलावे पर 29 मई 2025 को देश के कई शहरों में बिजली कर्मचारियों ने प्रदर्शन किया। ये प्रदर्शन लखनऊ, पटना, रांची, भोपाल, चेन्नई, कोलकाता, जयपुर और मुंबई जैसे बड़े शहरों में हुआ। कर्मचारी दोपहर के भोजन के समय बाहर निकलकर निजीकरण का शांतिपूर्ण विरोध कर रहे हैं।

क्यों हो रहा है निजीकरण का विरोध?

उत्तर प्रदेश सरकार पूर्वांचल और दक्षिणांचल बिजली वितरण कंपनियों को निजी हाथों में देने की योजना बना रही है। बिजली कर्मचारी और इंजीनियरों का कहना है कि सरकार गलत आंकड़े दिखाकर निजीकरण को सही ठहरा रही है। असली नुकसान की वजह महंगी बिजली खरीद और सरकारी विभागों का बिल न चुकाना है।

नौकरी और सेवाओं पर संकट

कर्मचारियों का कहना है कि निजीकरण के बाद लगभग 77,000 से ज्यादा पद खत्म हो सकते हैं। इसमें ठेके पर काम करने वाले, तकनीशियन, जूनियर इंजीनियर और वरिष्ठ अभियंता शामिल हैं। इसके अलावा सरकार “स्वैच्छिक रिटायरमेंट” योजना भी लागू कर सकती है, जिससे कई कर्मचारियों की नौकरी पर खतरा बढ़ जाएगा।

कर्मचारी संगठनों का समर्थन

इस आंदोलन को यूपी के 27 से ज्यादा कर्मचारी संगठनों, मजदूर यूनियनों और शिक्षकों ने समर्थन दिया है। उन्होंने साफ कहा है कि अगर बिजली कर्मचारियों का उत्पीड़न हुआ, तो राज्य भर के सभी कर्मचारी सड़क पर उतर जाएंगे। सभी ने मिलकर सरकार से निजीकरण की योजना वापस लेने की मांग की है।

सरकार और कर्मचारियों के बीच तनातनी

बिजली विभाग और कर्मचारी संगठनों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। विभाग का कहना है कि घाटा कर्मचारियों की गलतियों की वजह से है, जबकि कर्मचारी संगठन मानते हैं कि सरकार खुद महंगे बिजली सौदे करती है और बकाया नहीं चुकाती, इसलिए नुकसान हो रहा है।

निष्कर्ष

बिजली के निजीकरण को लेकर उत्तर प्रदेश में विरोध बढ़ता जा रहा है। अब यह आंदोलन सिर्फ एक राज्य तक सीमित नहीं रहा, बल्कि पूरे देश के कर्मचारी इसमें शामिल हो रहे हैं। सरकार को चाहिए कि वह सभी पक्षों की बात सुनकर कोई सही और संतुलित फैसला ले, ताकि बिजली सेवाएं बेहतर बनी रहें और कर्मचारियों की नौकरी भी सुरक्षित रहे।

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