BJP शासित राज्य में किसान की ये इज्जत! ADG पुलिस ने कहा – “मई-जून में किसान खाली.. अपराध करता है”

बिहार पुलिस के ADG (मुख्यालय) कुंदन कृष्णन का एक गैर-जिम्मेदाराना बयान सामने आया है, जिसने पूरे देश में किसानों और बुद्धिजीवियों के बीच आक्रोश पैदा कर दिया है। उन्होंने मीडिया से बातचीत में यह कह दिया कि “मई-जून के महीनों में हत्या जैसी घटनाएं इसलिए बढ़ जाती हैं क्योंकि किसानों के पास काम नहीं होता और वे खाली रहते हैं।” यह बयान न केवल किसानों की गरिमा पर हमला है, बल्कि एक संवैधानिक पद पर बैठे अधिकारी की सोच को भी उजागर करता है।
बड़ा बयान, बड़ी शर्मिंदगी
ADG कुंदन कृष्णन ने यह विवादित टिप्पणी राज्य में बढ़ते अपराधों पर बात करते हुए की। उन्होंने कहा कि गर्मियों के महीनों में किसान खाली रहते हैं और बेरोजगारी की वजह से अपराध की ओर झुक जाते हैं। इस बयान ने सवाल खड़े कर दिए हैं कि क्या कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी निभाने वाला एक वरिष्ठ अधिकारी ऐसे अपमानजनक और गैर-तथ्यात्मक बयान दे सकता है?
किसानों का अपमान, और कोई नहीं बोलेगा?
भारत जैसे कृषि प्रधान देश में, जहां किसान देश की रीढ़ माने जाते हैं, वहां उन्हें अपराधी बताना कहीं से भी स्वीकार्य नहीं है। यह बयान उन लाखों किसानों की मेहनत का अपमान है, जो मई-जून की तपती गर्मी में भी अपने खेतों में काम कर रहे होते हैं, जल संकट से जूझ रहे होते हैं और सरकार की उदासीन नीतियों से लड़ रहे होते हैं।
सोशल मीडिया पर फूटा गुस्सा
ADG का बयान जैसे ही सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, जनता का गुस्सा फूट पड़ा। ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर लोग खुलकर ADG कुंदन कृष्णन के इस्तीफे की मांग कर रहे हैं। कई यूजर्स ने लिखा कि “अगर देश के कानून के रक्षक ही किसानों को अपराधी समझने लगें, तो फिर किसान अपनी समस्याओं को लेकर किसके पास जाएं?”
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं भी तेज़
इस बयान पर राजनीतिक दलों ने भी तीखी प्रतिक्रिया दी है। कई विपक्षी नेताओं ने इसे “किसान विरोधी मानसिकता” का प्रतीक बताया है और मुख्यमंत्री से तत्काल इस बयान पर कार्रवाई की मांग की है। किसान संगठनों ने भी ADG से सार्वजनिक माफी मांगने की बात कही है और चेतावनी दी है कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो वे राज्यव्यापी विरोध प्रदर्शन करेंगे।
कानून के रक्षक या किसान विरोधी मानसिकता?
ADG का यह बयान न सिर्फ संवेदनहीन है, बल्कि यह इस बात का प्रमाण है कि सत्ता और सिस्टम में बैठे कुछ लोग आज भी किसानों को समझने के बजाय उन पर आरोप लगाने को तैयार रहते हैं। यह दर्शाता है कि किसानों की तकलीफों, उनकी बेरोजगारी, जल संकट और आत्महत्या की असली वजहों को नजरअंदाज कर, उन्हें ही अपराध के लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा है।
सरकार की किसान नीति पर बड़ा प्रश्नचिह्न ?
इस बयान ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि संवेदनशील पदों पर बैठे लोगों की जिम्मेदारी सिर्फ कानूनी व्यवस्था बनाए रखना ही नहीं, बल्कि समाज के प्रति संवेदनशीलता और समझदारी भी जरूरी है। ADG कुंदन कृष्णन का यह बयान एक गंभीर मुद्दा है और यदि इस पर समय रहते उचित कार्रवाई नहीं की गई, तो यह सरकार की किसान नीति और पुलिस प्रशासन की छवि दोनों पर बड़ा प्रश्नचिह्न छोड़ जाएगा।