लड़के से लड़की बना यह क्रिकेटर ! BCCI – ICC से कहा – “महिला टीम में खेलना है”, पूर्व भारतीय खिलाड़ी का है बेटा

महिला क्रिकेट में ट्रांस-वूमन खिलाड़ियों को खेलने की अनुमति को लेकर एक नई बहस छिड़ गई है। ट्रांस-वूमन एथलीट अनाया बांगर ने आईसीसी (ICC) और बीसीसीआई (BCCI) से अपील करते हुए इस दिशा में पहल करने की मांग की है। अनाया ने लड़के से लड़की बनने के अपने वैज्ञानिक, सामाजिक और व्यक्तिगत सफर को आधार बनाते हुए इसे ‘न्यायसंगत अधिकार’ बताया है।

अनाया की वैज्ञानिक रिपोर्ट: 8 पेज की डॉक्यूमेंटेड अपील

अनाया बांगर ने एक 8 पन्नों की साइंटिफिक रिपोर्ट तैयार की है जिसमें उन्होंने हार्मोनल बदलाव, टेस्टोस्टेरोन स्तर, और फिजिकल परफॉर्मेंस में आए परिवर्तनों का हवाला दिया है। उन्होंने रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया है कि उनकी शारीरिक और जैविक स्थिति अब महिला खिलाड़ियों के समकक्ष है और वे पूर्ण रूप से महिला क्रिकेट खेलने के योग्य हैं।

सोशल मीडिया पर वायरल हुआ बयान: “मैं महिला क्रिकेट के लिए एलिजिबल हूं”

“मैं महिला क्रिकेट खेलने के लिए एलिजिबल हूं। मेरी ट्रांजिशन प्रक्रिया, हार्मोन लेवल और मेडिकल सर्टिफिकेशन सभी वैध हैं। अब यह समय है कि मुझे क्रिकेट खेलने का हक दिया जाए।”
उनकी इस पोस्ट ने ट्रांसजेंडर एथलीटों के अधिकारों को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है।

BCCI और ICC की मौजूदा पॉलिसी: अब तक की स्थिति

बीसीसीआई और आईसीसी फिलहाल महिला क्रिकेट में ट्रांस-वूमन खिलाड़ियों के लिए कोई स्पष्ट और सार्वभौमिक नीति लागू नहीं करते हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुछ खेल संगठनों ने ट्रांस-वूमन की भागीदारी पर पाबंदियां भी लगाई हैं, विशेष रूप से तब जब जैविक अंतर प्रदर्शन में भूमिका निभाते हैं।

अनाया का तर्क: ‘स्पोर्ट्स में समावेशिता की ज़रूरत’

अनाया ने यह भी कहा कि ट्रांस-वूमन को सिर्फ उनकी पहचान के आधार पर बाहर करना वैज्ञानिक और नैतिक दोनों रूप से अनुचित है। उन्होंने लिखा कि खेल में समान अवसर और समावेशिता की वकालत होनी चाहिए, विशेषकर जब ट्रांस एथलीट मेडिकल और फिजिकल रूप से सभी मापदंडों पर खरे उतरते हों।

विवाद की संभावना: समर्थन और विरोध दोनों की मिली प्रतिक्रियाएं

अनाया की इस अपील को जहां कुछ वर्गों से समर्थन मिला है, वहीं कई लोग इसका विरोध भी कर रहे हैं। कुछ लोग मानते हैं कि जैविक अंतर खेल के निष्पक्षता को प्रभावित कर सकते हैं, जबकि अन्य कहते हैं कि समानता के मूलभूत अधिकारों को बनाए रखना ज़रूरी है।

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