पंजाब कांग्रेस में कैप्टन वन मैन आर्मी

दो बार प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री रहे अमरिंदर ने हाईकमान की बात कभी नहीं मानी; किसी पार्टी प्रधान से नहीं रहे अच्छे रिश्ते

पंजाब के CM पद से इस्तीफा देने को मजबूर हुए कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कभी कांग्रेस हाईकमान की बात नहीं मानी। पंजाब में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस नहीं बल्कि कैप्टन कांग्रेस चलाते रहे। कैप्टन के पंजाब में कांग्रेस के किसी भी प्रदेश अध्यक्ष से रिश्ते अच्छे नहीं रहे। हर बार उन्होंने राज्य में पार्टी अध्यक्ष को साइड लाइन रखा।

चुनाव में टिकट वितरण में भी कैप्टन ने किसी की नहीं चलने दी, लेकिन इस बार नवजोत सिंह सिद्धू के आगे कैप्टन टिक नहीं पाए। इसकी बड़ी वजह कैप्टन की पार्टी नेताओं से दूरी और पंजाब में अफसरशाही का हावी होना माना जा रहा है।

कैप्टन के आगे नहीं टिक सके हंसपाल, दूलो और केपी
कैप्टन अमरिंदर सिंह को 1999 में पंजाब कांग्रेस का चीफ बनाया गया था। इसके बाद 2002 में पार्टी को जीत मिली। 2002 में कैप्टन के बाद एचएस हंसपाल को प्रधान बनाया गया। वो ज्यादा समय पद पर नहीं रह सके। इसके बाद जब शमशेर दूलो प्रधान बनाए गए तो कैप्टन ने उन्हें पंजाब में खड़े नहीं होने दिया। फिर मोहिंदर सिंह केपी को प्रधान बनाया गया। उस वक्त तो कैप्टन ने अपनी टीम को केपी के अधीन काम करने से साफ मना कर दिया। हाईकमान को आंखें दिखाकर कैप्टन काम करते रहे। मजबूरी में कांग्रेस हाईकमान ने 2012 में कैप्टन को फिर प्रधान बना दिया।

सिद्धू से कलह के बाद बाजवा और कैप्टन की मुलाकात हुई थी।

बाजवा के पैर न उखाड़ सके तो जाट महासभा बना ली
इसके बाद विधानसभा चुनाव हुए, लेकिन कांग्रेस को हार मिली। मौका देख हाईकमान ने कैप्टन को कुर्सी से हटा दिया। इसके बाद प्रताप सिंह बाजवा को पंजाब कांग्रेस का प्रधान बनाया। कैप्टन ने उनके पैर भी उखाड़ने की कोशिश की।

बाजवा भी पंजाब की सियासत के मंझे खिलाड़ी थे। वो अपने हिसाब से संगठन चलाते रहे। इसका जवाब देने के लिए कैप्टन ने जाट महासभा बना दी। कैप्टन उसके पदाधिकारियों की नियुक्ति कर कांग्रेस को चुनौती देने लगे।

कांग्रेस दोफाड़ होने के आसार बने तो कैप्टन को अध्यक्ष बनाना पड़ा
उस समय पार्टी दोफाड़ होने की स्थिति बन गई थी। कैप्टन ने भी कांग्रेस हाईकमान को इसका इशारा कर दिया। यह भी चर्चा चली थी कि कैप्टन जाट महासभा के जरिए BJP से गठजोड़ कर पंजाब में चुनाव लड़ सकते हैं। इसके बाद हाईकमान को झुकना पड़ा। राहुल गांधी ने बाजवा को समझाया और कैप्टन को फिर प्रधान बना दिया गया।

कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ पूर्व पंजाब प्रधान सुनील जाखड़।

जाखड़ को भी CM हाउस में जलील होना पड़ा
कांग्रेस सत्ता में आई तो सुनील जाखड़ पंजाब कांग्रेस के प्रधान बन गए। उन्हें भी एक बार CM हाउस जाकर जलील होना पड़ा। कैप्टन से मिलने के लिए उन्हें इंतजार कराया गया। यहां तक कि उनके मोबाइल तक बाहर रखवा लिए गए। हालांकि जाखड़ ने इस मामले को ज्यादा तूल नहीं दिया। इसके बाद भी कैप्टन की संगठन से दूरी लगातार बढ़ती गई। इसी का फायदा नवजोत सिंह सिद्धू ने उठाया और इसी आधार पर कैप्टन की कुर्सी खतरे में पड़ गई।

पंजाब में कांग्रेस प्रधान बनने से पहले सिद्धू की कैप्टन से यह आखिरी मुलाकात थी।

इतने ताकतवर इसलिए थे कैप्टन
जब कैप्टन अमरिंदर सिंह एक के बाद एक विरोधियों को ठिकाने लगा रहे थे तो उनके साथ मांझा की सियासी तिकड़ी तृप्त रजिंदर बाजवा, सुखजिंदर रंधावा और सुखबिंदर सिंह सुख सरकारिया थे। 2017 में चुनाव के दौरान भी ये तीनों कैप्टन के साथ डटे रहे। हालांकि बदलते वक्त में ये तीनों ही कैप्टन से दूर हो गए। अब ये सिद्धू के खेमे में हैं और कैप्टन के खिलाफ पूरी बगावत की अगुआई कर रहे हैं।

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