एअर इंडिया अभी नहीं बिकी:सरकार ने कहा- अभी कोई फैसला नहीं लिया

पहले टाटा संस की बोली मंजूर होने की थी रिपोर्ट

एअर इंडिया को खरीदने के लिए टाटा ग्रुप की बोली मंजूर होने की खबर को सरकार ने खारिज कर दिया है। सरकार ने कहा है कि इस बारे में मीडिया रिपोर्ट्स गलत हैं, अभी कुछ तय नहीं किया गया है। जब भी इस बारे में कुछ फैसला होगा उसकी जानकारी मीडिया को दे दी जाएगी।

इससे पहले ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट में यह दावा किया गया था कि टाटा संस के एअर इंडिया के खरीदने के प्रस्ताव को सरकार ने स्वीकार कर लिया है। सरकार ने एअर इंडिया में पूरी 100% हिस्सेदारी बेचने के लिए टेंडर बुलाया था। एअर इंडिया की दूसरी कंपनी एअर इंडिया सैट्स (AISATS) में सरकार इसी के साथ 50% हिस्सेदारी बेचेगी।

एअर इंडिया के लिए जो कमेटी बनी है, उसमें वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण, कॉमर्स मंत्री पीयूष गोयल और एविएशन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया हैं। सूत्रों के अनुसार, एअर इंडिया का रिजर्व प्राइस 15 से 20 हजार करोड़ रुपए तय किया गया था।

ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक टाटा ग्रुप ने स्पाइस जेट के चेयरमैन अजय सिंह से करीबन 3 हजार करोड़ रुपए ज्यादा की बोली लगाई थी। एअर इंडिया के लिए बोली लगाने की आखिरी तारीख 15 सितंबर थी। उसके बाद से ही यह अनुमान था कि टाटा ग्रुप एअर इंडिया को खरीद सकता है।

मुंबई का ऑफिस भी डील में शामिल

इस डील के तहत एअर इंडिया का मुंबई में स्थित हेड ऑफिस और दिल्ली का एयरलाइंस हाउस भी शामिल है। मुंबई के ऑफिस की मार्केट वैल्यू 1,500 करोड़ रुपए से ज्यादा है। मौजूदा समय में एअर इंडिया देश में 4,400 और विदेशों में 1,800 लैंडिंग और पार्किंग स्लॉट कंट्रोल करती है।

भारीभरकम कर्ज से दबी है कंपनी

भारी-भरकम कर्ज से दबी एअर इंडिया को कई सालों से बेचने की योजना में सरकार फेल रही। सरकार ने 2018 में 76% हिस्सेदारी बेचने के लिए बोली मंगाई थी। हालांकि, उस समय सरकार मैनेजमेंट कंट्रोल अपने पास रखने की बात कही थी। जब इसमें किसी ने दिलचस्पी नहीं दिखाई तो सरकार ने मैनेजमेंट कंट्रोल के साथ इसे 100% बेचने का फैसला किया।

साल 2000 से बेचने की हो रही है कोशिश

एअर इंडिया को सबसे पहले बेचने का फैसला साल 2000 में किया गया था। यह वह साल था, जब अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार ने मुंबई के सेंटॉर होटल सहित कई कंपनियों का विनिवेश किया था। उस समय अरुण शौरी विनिवेश मंत्री थे। 27 मई 2000 को सरकार ने एअर इंडिया में 40% हिस्सा बेचने का फैसला किया था।

इसके अलावा सरकार ने 10% हिस्सा कर्मचारियों को शेयर देने के रूप में और 10% घरेलू वित्तीय संस्थानों को देने का फैसला किया था। इसके बाद सरकार की हिस्सेदारी एअर इंडिया में घटकर 40% रह जाती। हालांकि, तब से पिछले 21 साल से एअर इंडिया को बेचने की कई बार कोशिश हुई। पर हर बार किसी न किसी कारण से यह मामला अटक गया।

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