मुनि विमदसागर सुसाइड केस, जानिए उनके संत बनने की कहानी

10 साल की उम्र में पिच्छी-कमंडल लेकर घूमते थे, बच्चे महाराज कहकर चिढ़ाते थे

इंदौर में फांसी लगाकर जान देने वाले जैन मुनि आचार्य श्री 108 विमद सागर महाराज को बचपन से ही वैराग्य से लगाव था। यही नहीं, 10 साल की उम्र में ही वे संत बनने की क्रियाएं करते थे। उन्होंने हाथ से ही पिच्छी-कमंडल भी बना लिया था। इसे लेकर घूमा करते थे। यह देख बच्चे उन्हें महाराज कहकर चिढ़ाया करते थे।

इंदौर के परदेसीपुरा इलाके में शनिवार को विमद सागर महाराज ने पंखे से लटक कर फांसी लगा ली थी। वे मूलत: सागर जिले के शाहगढ़ के रहने वाले थे। शाहगढ़ में उनका जन्म 9 नवंबर 1976 को हुआ था। यहां शासकीय माध्यमिक स्कूल में उन्होंने 9वीं कक्षा तक पढ़ाई की थी। जैन संत बनने से पहले उनका नाम संजय कुमार उर्फ चम्मू जैन था।

आचार्य विमद सागर महाराज के साथ पढ़ने वाले प्रकाश जैन बताते हैं कि आचार्य श्री जब 10 साल के थे, तभी से उन्हें वैराग्य प्रिय था। वह संत बनने की तरह-तरह की क्रियाएं करते थे। यही नहीं, उन्होंने अपने हाथ से ही पिच्छी-कमंडल बना लिया था। पिच्छी-कमंडल को वे हाथ में लेकर घूमा करते थे। यह देख बच्चे उन्हें महाराज कहकर चिढ़ाया करते थे। इतना ही नहीं, घर में भी वे खाना खाने से पहले संतों की तरह क्रियाएं करते थे।

विराग सागर महाराज के सान्निध्य में आकर बदल गया जीवन
1991 में आचार्य श्री विराग सागर महाराज शाहगढ़ आए थे। यहां संजय कुमार उनके सान्निध्य में आए। उन्होंने संत बनने की क्रियाएं शुरू कर दी थीं। विमद सागर महाराज ने 9वीं कक्षा तक पढ़ाई की थी। वे कैरम, क्रिकेट, कंचा, चानिस चेकर खेला करते थे। गुरुसेवा और आहार दान करना उनकी रुचि थी।

शाहगढ़ में घर पर सन्नाटा पसरा है।

शाहगढ़ स्थित घर पर सन्नाटा, परिजन इंदौर रवाना
इधर, आचार्य विमद सागर महाराज के सुसाइड की खबर मिलते ही शाहगढ़ में शोक की लहर दौड़ गई। शाम को उनके परिवार वालों से मिलने के लिए समाज के लोग घर पहुंचे। इसके बाद परिवार के लोग इंदौर के लिए रवाना हुए। शाहगढ़ स्थित मकान पर सन्नाटा छाया रहा।

1992 में आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत ग्रहण किया
करीब 16 वर्ष की उम्र में विमद सागर महाराज ने 1992 में आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत ग्रहण किया था। वहीं, मुनि दीक्षा 1998 में अतिशय क्षेत्र बरासो भिंड में हुई थी। उनके मुनि दीक्षा गुरु आचार्य श्री विराग सागर महाराज हैं। संत बनने से पहले उनके परिवार के लोगों ने उन्हें कई बार मनाया था, लेकिन उन्होंने किसी की नहीं सुनी और मुनि दीक्षा ले ली थी।

पिता थे मलेरिया इंस्पेक्टर, बड़े भाई हैं बैंक मैनेजर
परिचित बताते हैं कि विमद सागर महाराज के पिता शीलचंद जैन मलेरिया इंस्पेक्टर थे, जो अब रिटायर्ड हो चुके हैं। मां सुशीला जैन गृहिणी हैं। बड़े भाई संतोष जैन सेंट्रल बैंक में मैनेजर हैं। तीन बहनें मीना, ममता और माधुरी जैन हैं।

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