फर्जी एनकाउंटर में तत्कालीन SSP-DSP समेत 5 पुलिसकर्मियों को उम्रकैद, 7 को मारा था..

पंजाब के तरनतारन जिले में 1993 में हुए फर्जी एनकाउंटर मामले में आखिरकार तीन दशक बाद इंसाफ हुआ है। सोमवार को CBI की स्पेशल कोर्ट ने इस बहुचर्चित मामले में रिटायर्ड SSP भूपेंद्रजीत सिंह, DSP दविंदर सिंह, इंस्पेक्टर सूबा सिंह, ASI गुलबर्ग सिंह और ASI रघबीर सिंह को उम्रकैद की सजा सुनाई। इन सभी पर भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) और 120-B (आपराधिक साजिश) के तहत मुकदमा चला।

फर्जी मुठभेड़ में मारे गए थे सात लोग, चार SPO भी थे शामिल

यह मामला 1993 का है, जब पुलिस ने दो अलग-अलग मुठभेड़ों में सात लोगों को मारा हुआ दिखाया। इनमें से चार लोग पंजाब पुलिस में विशेष पुलिस अधिकारी (SPO) के पद पर तैनात थे। पुलिस ने इन लोगों को 27 जून 1993 को उनके घरों से उठाया और कई दिनों तक अवैध हिरासत में रखकर यातनाएं दीं।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर हुई CBI जांच, खुला फर्जीवाड़ा

फर्जी मुठभेड़ को 28 जुलाई 1993 को DSP भूपेंद्रजीत सिंह के नेतृत्व में अंजाम दिया गया। तरनतारन के थाना वैरोवाल और सहराली में दो फर्जी एनकाउंटर दर्ज किए गए। 12 दिसंबर 1996 को सुप्रीम कोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए इसकी जांच CBI को सौंपी।

CBI की जांच में दो अहम बिंदुओं से खुला झूठ का पर्दाफाश

CBI की विस्तृत जांच में पाया गया कि 2 जुलाई 1993 को पुलिस ने दावा किया कि शिंदर सिंह, देसा सिंह और सुखदेव सिंह सरकारी हथियारों के साथ फरार हो गए। 10 दिन बाद पुलिस ने कथित मुठभेड़ में चार लोगों की हत्या का दावा किया।
जांच में दो अहम बातें सामने आईं:

  • पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में साफ हुआ कि मारे गए लोगों को पहले बेरहमी से पीटा गया था।
  • फोरेंसिक जांच से स्पष्ट हुआ कि मुठभेड़ में इस्तेमाल किए गए हथियारों से जुड़ी कहानी झूठी थी।

पहचान के बावजूद लावारिस घोषित कर दिया अंतिम संस्कार

CBI की रिपोर्ट के अनुसार, मृतकों की पहचान मौजूद होने के बावजूद उन्हें ‘लावारिस’ बताकर उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया। यह पुलिस द्वारा सबूत मिटाने और साजिश को छुपाने की सोची-समझी चाल थी। 1999 में मृतक शिंदर सिंह की पत्नी नरिंदर कौर की शिकायत पर CBI ने केस दर्ज किया।

मृतकों के परिवारों की दास्तान: न्याय के लिए सालों तक संघर्ष

मृतक सुखदेव सिंह की पत्नी ने बताया, “जब मेरे पति को उठाया गया, मैं गर्भवती थी। एक महीने बाद पता चला कि उनका एनकाउंटर हुआ है। बच्चों को मजदूरी करके पाला, कभी सरकारी मदद नहीं मिली।”
वहीं, मृतक छिंदा सिंह की पत्नी नरेंद्र कौर ने कहा, “पुलिस उनके पति को छत से पकड़ कर ले गई थी। न शव दिया गया, न अंतिम दर्शन। परिवार आज भी मानसिक पीड़ा से गुजर रहा है।”

10 आरोपी, 5 की ट्रायल से पहले ही मौत

इस मामले में कुल 10 पुलिसकर्मी आरोपी थे, लेकिन कोर्ट में ट्रायल के दौरान इनमें से पांच की मृत्यु हो चुकी थी। शेष पांच दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है, जिससे पीड़ित परिवारों को न्याय की कुछ आस बंधी है।

न्याय की मिसाल या देरी से मिला इंसाफ?

CBI कोर्ट का यह फैसला भारतीय न्याय व्यवस्था की एक मिसाल भी है और एक सवाल भी—क्या तीन दशक बाद मिला न्याय, सचमुच न्याय है? फिर भी यह निर्णय मानवाधिकारों और पुलिस की जवाबदेही को लेकर एक महत्वपूर्ण संदेश देता है।

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