एक और देश ने Donald Trumph के लिए मांगा ‘नोबेल पुरुस्कार’, भारत का जवाब भी आया !

नई दिल्ली। कंबोडिया ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित करने की घोषणा की है। यह कदम उस समय सामने आया जब दुनिया में कई जगहों पर भू-राजनीतिक तनाव चरम पर है। इस पर भारत की प्रतिक्रिया भी सामने आ चुकी है, जिसने कंबोडिया के इस फैसले को ‘संप्रभु राष्ट्र का स्वतंत्र निर्णय’ बताया है।
कंबोडिया के प्रधानमंत्री के बेटे ने किया नामांकन का ऐलान
कंबोडिया के प्रधानमंत्री हुन मानेट के बेटे और वहां की संसद के सदस्य हुन मानेत ने खुद इस बात की पुष्टि की कि उन्होंने डोनाल्ड ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए आधिकारिक तौर पर नामांकित किया है। उन्होंने ट्रंप की उन नीतियों की तारीफ की जो “शांति, स्थिरता और विश्व सहयोग” को बढ़ावा देती हैं।
डोनाल्ड ट्रंप की विदेश नीति को बताया निर्णायक
हुन मानेत ने ट्रंप की विशेष रूप से उत्तर कोरिया और मध्य-पूर्व में शांति की कोशिशों की सराहना की। उन्होंने दावा किया कि ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका ने पारंपरिक सैन्य दखल से अलग हटकर कूटनीतिक संवाद को प्राथमिकता दी।
भारत की प्रतिक्रिया: ‘किसी संप्रभु राष्ट्र का निर्णय है’
इस पूरे घटनाक्रम पर भारत की ओर से विदेश मंत्रालय ने बयान जारी किया। मंत्रालय ने कहा, “यह कंबोडिया जैसे संप्रभु राष्ट्र का स्वतंत्र निर्णय है कि वह किन वैश्विक नेताओं को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित करता है। भारत इस पर टिप्पणी नहीं करेगा।”
हालांकि सूत्रों के मुताबिक, भारत ने इस बात पर ध्यान दिलाया कि वैश्विक मंचों पर शांति और स्थिरता के प्रयासों को मान्यता देना अंतरराष्ट्रीय संबंधों को मजबूत करता है। वहीं, वाइट हॉउस के दावे के बारे में सवाल पूछे जाने पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने शुक्रवार को कहा, “जहां तक वाइट हाउस के बयानों का सवाल है, कृपया अपना सवाल उनसे ही पूछे।”
व्हाइट हाउस की प्रतिक्रिया
व्हाइट हाउस की ओर से अब तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है। हालांकि, अमेरिकी मीडिया में इस नामांकन की खबर प्रमुखता से चल रही है और इसे ट्रंप की संभावित 2024 की चुनावी रणनीति से जोड़कर देखा जा रहा है।
ट्रंप की छवि को फायदा या नुकसान?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कंबोडिया जैसे देश से मिले इस नामांकन से ट्रंप की अंतरराष्ट्रीय छवि को बल मिल सकता है। लेकिन आलोचक इसे ‘राजनीतिक स्टंट’ भी कह रहे हैं, जिसका उद्देश्य दक्षिण एशिया में अमेरिका की भूमिका को दोबारा उभारना है।