बुलंदशहर हिंसा में 4 को उम्रकैद, 33 को 7-7 साल की सजा.. BJP-RSS और बजरंग दल के नेता भी शामिल !

उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में 3 दिसंबर 2018 को गोकशी की अफवाह के बाद भड़की हिंसा में इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की हत्या कर दी गई थी। अब कोर्ट ने 6 साल बाद इस मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया है।
इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह हत्याकांड: पांच को उम्रकैद की सजा
बुलंदशहर की विशेष अदालत ने इंस्पेक्टर सुबोध सिंह की हत्या के मामले में प्रशांत नट, डेविड, राहुल, जॉनी चौधरी और लोकेंद्र को उम्रकैद की सजा सुनाई है। इन पांचों को IPC की धारा 302 (हत्या) के तहत दोषी पाया गया।
हिंसा और आगजनी के दोष में 33 लोगों को 7–7 साल की सजा
घटना के दौरान पुलिस चौकी फूंक दी गई थी, दर्जनों सरकारी व निजी वाहन जलाए गए थे, और जमकर पत्थरबाजी हुई थी। इन हिंसक घटनाओं में शामिल 33 अभियुक्तों को कोर्ट ने IPC की धारा 147, 148, 436, 353, 332, 427 आदि के तहत 7–7 साल की सजा सुनाई है।
सजा पाने वालों में कई बड़े नाम, BJP और RSS से कनेक्शन
सजा पाए कई नाम राजनीतिक और संगठनों से जुड़े रहे हैं, जिनमें शामिल हैं:
- योगेश राज – घटना के समय बजरंग दल का जिला संयोजक, अब जिला पंचायत सदस्य
- सचिन अहलावत – BJP मंडल अध्यक्ष
- पवन राजपूत – RSS के नगर कार्यवाह
- शिखर अग्रवाल – निषाद पार्टी का स्थानीय नेता
इन नामों का सामने आना, गोकशी की अफवाह के पीछे संगठित साजिश और राजनीतिक संरक्षण की ओर संकेत करता है।
क्या हुआ था 3 दिसंबर 2018 को?
बुलंदशहर के स्याना इलाके में खेत में कथित गोवंश के अवशेष पाए जाने की खबर फैली। इसके बाद स्थानीय ग्रामीणों और हिंदू संगठनों के कार्यकर्ताओं ने सड़कों पर उतरकर जमकर बवाल काटा। पुलिस को नियंत्रित करने में दिक्कत हुई, हालात बेकाबू हो गए।
इस दौरान इंस्पेक्टर सुबोध सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी गई। वे दादरी के अखलाक हत्याकांड की जांच में भी शामिल रह चुके थे।
उत्तर प्रदेश –
बुलंदशहर में 3 दिसंबर 2018 को हुई हिंसा में कोर्ट का फैसला आया। 5 को उम्रकैद, 33 को 7–7 साल की सजा सुनाई।खेत में गोवंश के अवशेष मिले थे। इसके बाद स्थानीय लोगों और हिन्दू संगठनों ने बवाल काटा। पुलिस चौकी फूंक दी। दर्जनों वाहन जला दिए। इंस्पेक्टर सुबोध सिंह की गोली… pic.twitter.com/Vsg7zzjzfQ
— Sachin Gupta (@SachinGuptaUP) August 1, 2025
केस में राजनीतिक दखल और जांच में देरी
इस केस को लेकर शुरुआत से ही राजनीतिक दबाव और प्रशासनिक शिथिलता की बातें सामने आती रहीं। मुख्य आरोपी योगेश राज की गिरफ्तारी में भी देरी हुई थी।
पुलिस ने पहले इसे “भीड़ का गुस्सा” बताया, लेकिन बाद में कोर्ट में पेश सबूतों और गवाहों ने पूरे मामले को एक पूर्व नियोजित हिंसा की शक्ल दी।
अदालत ने क्या कहा?
कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि –
“भीड़ द्वारा की गई हिंसा केवल स्वतःस्फूर्त नहीं थी, इसके पीछे योजनाबद्ध उकसावे और लापरवाही दोनों जिम्मेदार हैं।”
इंसाफ की राह लंबी, लेकिन उम्मीद कायम
इंस्पेक्टर सुबोध सिंह के परिवार ने कोर्ट के फैसले का स्वागत किया, लेकिन साथ ही यह सवाल भी उठाया कि राजनीतिक संरक्षण पाए दोषियों पर देर से कार्रवाई क्यों हुई?