ये है ‘जगदीप धनखड़’ के इस्तीफे का सच? 11 दिन पहले बताया रिटायरमेंट प्लान, फिर BJP सांसदों के कोरे कागज पर साइन..!

भारत के 14वें उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने संसद के मानसून सत्र के पहले ही दिन अचानक अपने पद से इस्तीफा देकर सभी को चौंका दिया। उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु को भेजे पत्र में स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए तत्काल प्रभाव से पद छोड़ने की घोषणा की। लेकिन इससे महज 11 दिन पहले तक वो अपने पांच साल का कार्यकाल पूरा करने की बात कर रहे थे। अब सवाल यह है कि क्या धनखड़ का इस्तीफा सिर्फ स्वास्थ्य कारणों से था, या इसके पीछे कोई बड़ा राजनीतिक संदेश छिपा है?

11 दिन पहले की गई घोषणा पर यू-टर्न क्यों?

10 जुलाई को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के एक कार्यक्रम में धनखड़ ने खुद कहा था कि “अगर भगवान की कृपा रही तो मैं 2027 में कार्यकाल पूरा करके रिटायर हो जाऊंगा।” लेकिन 21 जुलाई को, ठीक 11 दिन बाद, उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। यह विरोधाभास केवल संयोग नहीं हो सकता, खासकर तब जब उनकी तबीयत मार्च और जून में खराब हो चुकी थी लेकिन जुलाई में वो फिर सक्रिय नजर आए।

मार्च से बिगड़ती तबीयत या कुछ और?

मार्च 2025 में धनखड़ को सीने में दर्द के चलते एम्स में भर्ती कराया गया था। जून में उत्तराखंड के एक कार्यक्रम में उनकी तबीयत फिर बिगड़ी और वो भावुक भी हो गए। लेकिन जुलाई में वो पूरी तरह सक्रिय दिखे, संसद के मानसून सत्र की अध्यक्षता की और 10 जुलाई तक अपने कार्यकाल को लेकर आश्वस्त नजर आए। ऐसे में सिर्फ स्वास्थ्य को वजह बताना राजनीतिक विश्लेषकों को हजम नहीं हो रहा।

राज्यसभा में यशवंत वर्मा हटाने के प्रस्ताव पर बवाल

वहीं, दूसरी ओर धनखड़ के इस्तीफे से कुछ समय पहले राज्यसभा में विपक्ष द्वारा हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा को हटाने का प्रस्ताव पेश किया गया, जिसे सभापति के तौर पर धनखड़ ने स्वीकार कर लिया। यह निर्णय कथित तौर पर सरकार को पसंद नहीं आया। लोकसभा में भी ऐसा प्रस्ताव लाने की योजना थी, लेकिन राज्यसभा में विपक्ष की पहल को स्वीकार करना सत्ता पक्ष के लिए सीधी चुनौती माना गया।

जेपी नड्डा की नाराजगी और सदन में संकेत

इस पूरे घटनाक्रम के बीच भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने सदन में बयान दिया कि “मेरे शब्द रिकॉर्ड में दर्ज होंगे, यह चेयर का अपमान था।” हालांकि उन्होंने बाद में सफाई दी कि ये टिप्पणी विपक्ष के हंगामे पर थी, लेकिन राजनीतिक जानकार इसे धनखड़ के खिलाफ संदेश के रूप में देख रहे हैं। माना जा रहा है कि यहीं से सत्ता पक्ष और उपराष्ट्रपति के बीच मतभेद खुलकर सामने आए।

बिजनेस एडवाइजरी कमेटी (BAC) में टकराव

उधर, BAC की बैठक में एल मुरुगन (राज्यमंत्री) ने बैठक को अगले दिन के लिए टालने की मांग की। लेकिन उसी बैठक में जेपी नड्डा और किरेन रिजिजू की गैरमौजूदगी ने जगदीप धनखड़ को नाराज किया। कांग्रेस सांसद सुखदेव भगत ने भी इस मुद्दे को उठाया और पूछा कि सत्ता पक्ष के अहम नेता आखिर क्यों बैठक से नदारद थे?

क्या खाली कागज पर हस्ताक्षर करवाना था असली संदेश?

सबसे चौंकाने वाली बात जो सामने आ रही है कि इसी दिन संसद भवन में राजनाथ सिंह के कार्यालय के बाहर हलचल देखी गई। सूत्रों के मुताबिक, भाजपा सांसदों से कोरे कागज पर हस्ताक्षर करवाए जा रहे थे, जिससे एक अज्ञात सस्पेंस बन गया। एक भाजपा सांसद ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि उन्हें बिना किसी जानकारी के कोरे कागज पर साइन करने को कहा गया। यह बेहद असामान्य और चिंताजनक प्रक्रिया थी, जिससे सत्ता पक्ष की रणनीति को लेकर सवाल खड़े हो गए।

तीसरे उपराष्ट्रपति जिन्होंने कार्यकाल पूरा नहीं किया

भारत के इतिहास में धनखड़ तीसरे उपराष्ट्रपति हैं जिन्होंने कार्यकाल पूरा नहीं किया। उनसे पहले वीवी गिरि ने राष्ट्रपति चुनाव के लिए इस्तीफा दिया था और कृष्ण कांत का निधन कार्यकाल के दौरान हुआ था। लेकिन धनखड़ का इस्तीफा उन दोनों से अलग है — ना तो चुनाव लड़ना है, ना ही कोई नई जिम्मेदारी मिली है। सिर्फ स्वास्थ्य का हवाला दिया गया है, जो कई हलकों में संदेहास्पद माना जा रहा है।

राजनीति के जानकार क्या कह रहे हैं?

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह इस्तीफा सिर्फ स्वास्थ्य कारणों से नहीं है। राज्यसभा की कार्यवाही, विपक्ष के महाअभियोग प्रस्ताव को स्वीकार करना, जेपी नड्डा की नाराजगी, BAC मीटिंग में सत्ता पक्ष की गैरहाजिरी और कोरे कागज पर साइन करवाने जैसी घटनाएं मिलकर एक गहरे सत्ता संघर्ष की ओर इशारा करती हैं।

इस्तीफा सिर्फ व्यक्तिगत नहीं, राजनीतिक भी?

धनखड़ का इस्तीफा केवल व्यक्तिगत स्वास्थ्य का मामला नहीं लगता। इसके पीछे सत्ता पक्ष की नाराजगी, संसदीय रणनीति में टकराव और निर्णयों पर असहमति की स्पष्ट झलक है। यह घटना सिर्फ एक संवैधानिक पदाधिकारी के इस्तीफे तक सीमित नहीं है, बल्कि यह देश की संसदीय राजनीति में सत्ता-संस्थाओं के बीच बढ़ते तनाव का संकेत भी है।

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