बड़ी खबर: Mumbai Train Blast के 12 आरोपी हाईकोर्ट से बरी, 5 को हुई थी फांसी की सजा..

Mumbai Train Blast: मुंबई ट्रेन धमाका केस में बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाया। साल 2006 में हुए सिलसिलेवार धमाकों के 12 आरोपियों को अदालत ने बरी कर दिया है। जस्टिस अनिल किलोर और जस्टिस श्याम चांडक की विशेष पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपियों के खिलाफ अपराध साबित करने में विफल रहा। कोर्ट के अनुसार, पेश किए गए सबूत दोषसिद्धि के लिए पर्याप्त और निर्णायक नहीं थे।

11 जुलाई 2006: जब मुंबई की ट्रेनों में मचा था कहर

मुंबई में 11 जुलाई 2006 की शाम को मात्र 11 मिनट में सात विस्फोट हुए थे। शाम 6:24 बजे से 6:35 बजे के बीच वेस्टर्न सबर्बन रेलवे की लोकल ट्रेनों के फर्स्ट क्लास डिब्बों को निशाना बनाया गया था।
खार, बांद्रा, माहिम, जोगेश्वरी, बोरीवली, माटुंगा और मीरा-भायंदर जैसे स्टेशनों के पास प्रेशर कुकर में आरडीएक्स, अमोनियम नाइट्रेट, फ्यूल ऑयल और कीलों से बने बमों को टाइमर से उड़ाया गया था।

इन धमाकों में 180 लोगों की जान गई थी, जबकि 824 से ज्यादा लोग घायल हुए थे।

लश्कर-ए-तैयबा और सिमी का बताया गया था हाथ

पुलिस और एटीएस ने दावा किया था कि इस हमले की साजिश पाकिस्तान के बहावलपुर में लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी आजम चीमा ने रची थी। मार्च 2006 में उसने सिमी और लश्कर के नेताओं के साथ बैठक कर यह योजना बनाई थी। मई में 50 युवकों को ट्रेनिंग कैंप में बम बनाने और हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी गई थी।

13 पाकिस्तानी आरोपी, 5 को मिली थी फांसी

एंटी टेररिज्म स्क्वॉड (ATS) ने 20 जुलाई से 3 अक्टूबर 2006 के बीच देशभर से आरोपियों को गिरफ्तार किया। इनमें 13 पाकिस्तानी नागरिक भी शामिल थे।
नवंबर 2006 में आरोपियों ने कोर्ट को बताया कि उनसे जबरन इकबालिया बयान लिया गया। फिर सितंबर 2015 में स्पेशल मकोका कोर्ट ने 13 में से 5 को फांसी, 7 को उम्रकैद और एक को बरी किया था।

2016 में हाईकोर्ट पहुंचे थे आरोपी, अब हुआ इंसाफ

2016 में सभी दोषियों ने बॉम्बे हाईकोर्ट में सजा के खिलाफ अपील दायर की थी। 2019 में सुनवाई शुरू हुई और 2023 से 2024 तक मामला लंबित रहा।
2025 में आखिरकार अदालत ने फैसला सुनाते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष के सबूत किसी को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। इस आधार पर सभी 12 आरोपियों को बाइज्जत बरी कर दिया गया।

न्याय या चूक? सवालों के घेरे में जांच एजेंसियां

इस फैसले ने जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली और मकोका कोर्ट के निर्णयों पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। जहां 19 साल तक कई आरोपी जेल में रहे, वहीं अब कोर्ट का यह कहना कि सबूत ही पर्याप्त नहीं थे, न्याय प्रणाली और जांच व्यवस्था की पारदर्शिता पर गहन विमर्श की मांग करता है।

जांच एजेंसियों की जवाबदेही ?

मुंबई ट्रेन धमाकों में 19 वर्षों बाद आया यह फैसला न्याय की राह में देरी को दर्शाता है। यह मामला एक बार फिर जांच एजेंसियों की जवाबदेही और निष्पक्ष प्रक्रिया की मांग को मजबूती देता है।

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