दुखद: रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के गुरु संतोष द्विवेदी का हुआ निधन.. भक्तों में शोक की लहर, जानिए कौन थे उनके गुरु ?

देश के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के आध्यात्मिक गुरु और समाज में आदर्श माने जाने वाले संत संतोष द्विवेदी का शनिवार रात 80 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उनके निधन से कानपुर समेत पूरे प्रदेश में शोक की लहर है। हजारों की संख्या में उनके भक्त और शिष्य श्याम नगर स्थित आश्रम में अंतिम दर्शन के लिए उमड़ पड़े हैं।
श्याम नगर आश्रम में उमड़ा भक्तों का सैलाब
संतोष द्विवेदी के निधन की सूचना मिलते ही श्याम नगर स्थित उनके आवास और आश्रम पर देर रात से ही भक्तों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी। लोग अपने पूज्य गुरु के अंतिम दर्शन और उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए रातभर भजन-कीर्तन और ‘हरे राम हरे कृष्णा’ का संकीर्तन करते रहे। आश्रम परिसर में भक्तों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है, जिससे क्षेत्र में भारी भीड़ देखने को मिल रही है।
आवागमन के रास्तों को किया गया ब्लॉक, सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद
भीड़ की संख्या को देखते हुए चकेरी पुलिस ने सुरक्षा व्यवस्था को संभाल लिया है। आश्रम से लगभग 200 मीटर की दूरी पर आने और जाने वाले सभी रास्तों को फिलहाल ब्लॉक कर दिया गया है ताकि भीड़ नियंत्रण में रहे और कोई अव्यवस्था न हो। हरिहर धाम पार्क के बाहर भी भक्तों की लंबी कतारें देखी जा रही हैं।
राजनीतिक और सामाजिक हस्तियों का श्रद्धांजलि अर्पण
रविवार सुबह से ही कई जनप्रतिनिधि और गणमान्य व्यक्ति संतोष द्विवेदी के अंतिम दर्शन और श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए आश्रम पहुंचने लगे हैं। सुबह 9:46 बजे पूर्व विधायक रघुनंदन सिंह भदौरिया ने आश्रम पहुंचकर उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किए। इसके अतिरिक्त अन्य राजनीतिक और सामाजिक हस्तियां भी गुरुजी के अंतिम दर्शन के लिए पहुंच रही हैं।
बिठूर ब्रह्मावर्त घाट पर होगा अंतिम संस्कार
गुरुजी के पार्थिव शरीर को थोड़ी देर में श्याम नगर आश्रम से बिठूर स्थित ब्रह्मावर्त घाट के लिए रवाना किया जाएगा, जहां उनका अंतिम संस्कार संपन्न होगा। हालांकि रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के अंतिम संस्कार में शामिल होने को लेकर अभी तक कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई है।
संतोष द्विवेदी: एक जीवन, जो समाज और अध्यात्म को समर्पित रहा
संतोष द्विवेदी न केवल रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के आध्यात्मिक गुरु थे, बल्कि वे हजारों लोगों के जीवन में दिशा देने वाले एक प्रेरणास्रोत भी थे। उनका पूरा जीवन समाज सेवा, साधना और अध्यात्म को समर्पित रहा। उनके निधन से शिष्यों, भक्तों और पूरे अध्यात्म जगत में शोक की लहर है।