मंत्री के कार्यक्रम में ही झूमने लगे अफसर, स्टेज पर चढ़ गए.. फिर DM ने लिया ऐसा एक्शन, जो हो रहा वायरल

बिहार के सुपौल जिले में आयोजित सरकारी ‘मछुआरा दिवस’ समारोह उस समय विवादों में घिर गया, जब जिला मत्स्य पदाधिकारी शंभू कुमार पर मंच पर शराब के नशे में हंगामा करने का आरोप लगा। यह मामला तब सामने आया जब उपस्थित अधिकारियों और जनता ने मंच पर उनकी हरकतों को देखा और स्थिति बिगड़ती चली गई। सरकारी मंच पर इस तरह की लापरवाही ने बिहार में शराबबंदी कानून की प्रभावशीलता पर एक बार फिर सवाल खड़े कर दिए हैं।
मंच पर नशे में दिखे अधिकारी, तुरंत गिरफ्तार
उत्पाद निरीक्षक अशोक कुमार ने जानकारी दी कि शंभू कुमार को तत्काल गिरफ्तार कर उत्पाद विभाग कार्यालय ले जाया गया। वहाँ उनका ब्लड और यूरीन सैंपल लिया गया, ताकि नशे की पुष्टि की जा सके। बाद में उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। सरकारी कार्यक्रम में नशे में होने की पुष्टि एक गंभीर प्रशासनिक चूक को दर्शाती है।
पहले भी शराब पीते पकड़े जा चुके हैं शंभू कुमार
यह पहला मामला नहीं है जब शंभू कुमार पर शराब पीने का आरोप लगा हो। मार्च 2024 में भी उन्हें इंडो-नेपाल बॉर्डर के पास शराब पीते पकड़ा गया था। उस समय उन्होंने जुर्माना भरकर खुद को छुड़ाया था, और यह मामला ज्यादा तूल नहीं पकड़ सका था। लेकिन इस बार मामला सार्वजनिक मंच से जुड़ा हुआ है, जिससे इसकी गंभीरता कई गुना बढ़ गई है।
शंभू कुमार का दावा: ‘नहीं पी शराब’, लेकिन पुरानी घटना कबूली
शंभू कुमार ने इस बार शराब पीने से इनकार किया है। हालांकि उन्होंने मार्च 2024 की घटना को स्वीकारा है। यह विरोधाभास उनकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करता है। उत्पाद विभाग की मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर अब आगे की कार्रवाई तय की जाएगी।
2016 में लागू हुआ था शराबबंदी कानून, लेकिन जारी है अवैध कारोबार
बिहार में शराबबंदी कानून अप्रैल 2016 से लागू है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसे एक सामाजिक सुधार के रूप में प्रस्तुत किया था। हालांकि, अवैध शराब का कारोबार अब भी चरम पर है। शराब माफिया गुप्त स्थानों पर देसी शराब बनाते हैं और रात में इसकी सप्लाई होती है।
विपक्ष का आरोप: कानून सिर्फ कागज़ों पर, जमीनी हकीकत अलग
विपक्षी दलों ने बार-बार यह आरोप लगाया है कि शराबबंदी से राज्य को फायदा कम, नुकसान ज्यादा हुआ है। न तो शराब पूरी तरह बंद हो सकी, न ही उससे होने वाली मौतें रुकीं। सुपौल की यह घटना विपक्ष के इन दावों को और मजबूत करती है।
सवालों के घेरे में प्रशासन और शराबबंदी की नीति
इस घटना ने सरकार की शराबबंदी नीति पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। जब एक सरकारी अधिकारी ही शराब के नशे में मंच पर पहुंच सकता है, तो आम जनता से शराब से दूरी की उम्मीद करना विडंबना ही है। शासन और प्रशासन को अब कानून के क्रियान्वयन में और पारदर्शिता तथा कठोरता लानी होगी।