लंबी है कतार! अब लाशों को भी करना पड़ रहा इंतजार, यूपी में 48 घंटे बाद भी नहीं हो रहे पोस्टमार्टम, क्यों बुरा हाल ?

लखनऊ के प्रतिष्ठित केजीएमयू (King George’s Medical University) अस्पताल में सोमवार को पोस्टमार्टम में अत्यधिक देरी होने से मृतक परिजनों में आक्रोश फैल गया। सोमवार शाम तक भी 20 में से केवल 14 शवों का ही पोस्टमार्टम हो पाया था, जिसके चलते परिजन चौक पुलिस के समक्ष प्रदर्शन करने को मजबूर हुए।

लंबित पोस्टमार्टम की वजह से गहरा अक्रोश

केजीएमयू के पोस्टमॉर्टम हाउस पर कुल 20 शव पहुंचाए गए थे, लेकिन केवल 14 का ही Tuesday शाम तक ही निवेदन किया गया था। शेष शवों का पोस्टमार्टम कर्मचारी कहकर टालते रहे कि “डॉक्टर नहीं आए” — जिससे परिवारों की उम्मीद टूट गई। गुस्साए लोग देर शाम तक पोस्टमॉर्टम हाउस पर ही धरने पर बैठे रहे।

डॉक्टरों की कमी, कर्मचारियों के भागने का आरोप

परिजनों का आरोप था कि इस प्रक्रिया के दौरान केवल एक डॉक्टर मौजूद था — जबकि दो डॉक्टर मुख्य रूप से काम करते हैं। ऑर्गनाइजेशन की लापरवाही और सिस्टम की सुनवाई न करने से नाराज़ लोग भड़के, व पोस्टमॉर्टम हाउस में मौजूद कर्मचारी मौके पर सेवाएं छोड़कर चले गए। टाल-मटोल से वारदात और वारदात का जबर्दस्त विरोध देखने को मिला।

पुलिस मध्यस्थ बनी और शांत कराया मंच

हंगामे की सूचना मिलते ही चौक थाने की पुलिस पहुंची और परिजनों को शांतिदायक समझाईश देकर स्थिति को नियंत्रण में ला लिया। करीब आधे घंटे तक चले तनावपूर्ण माहौल के बाद पुलिस की तत्परता से अपदस्थ स्थिति शांत हो सकी।

शवदाह और आगे की कार्रवाई

परिजनों को बताया गया कि बाकी शवों का पोस्टमॉर्टम अब बुधवार को होगा। उन्होंने प्रशासन और विश्वविद्यालय से न्याय की मांग की है, साथ ही समय पर पोस्टमॉर्टम एवं शव सौंपने की कार्रवाई तेज करने की मांग भी रखी है।

कारण और नीतिगत प्रश्न

इस पूरे घटनाक्रम ने अस्पताल की व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं:

क्या पर्याप्त डॉक्टर व स्टॉफ की नेपथ्य परिस्थिति सुनिश्चित है?

क्या पोस्टमॉर्टम प्रक्रिया पर मानकीकृत समय सीमा लागू की जानी चाहिए?

क्या हर अस्पताल में इस तरह के हिंसा-रोधी अभ्यास मौजूद हैं?

केजीएमयू जैसी प्रतिष्ठित संस्था में भी न्यूनतम संसाधन और समयबंधन की त्रुटि से बेबस परिवारों का आक्रोश झेलना पड़ रहा है। पोस्टमॉर्टम में देरी के यह घटना सिर्फ इंसानियत व सम्मान की नींव को हिला नहीं रही, बल्कि स्वास्थ्य प्रणाली में समग्र सुधार की मांग भी गूंज रही है।

 

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