“बिना दिमाग लगाए.. ये कैसा बेतुका नोटिस”, मदरसे ढहाने को लेकर हाईकोर्ट की यूपी सरकार को भयंकर लताड़

उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती ज़िले में 27 मदरसों को गिराने की प्रशासनिक कार्यवाही पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने बड़ी राहत दी है। कोर्ट ने न केवल इन मदरसों को ढहाने पर रोक लगाई, बल्कि प्रशासन द्वारा जारी किए गए नोटिसों की वैधता पर भी गंभीर सवाल खड़े किए हैं। कोर्ट ने पहली नजर में इन नोटिसों को “बिना दिमाग लगाए जारी” बताया है और सरकार से जवाब मांगा है। यह फैसला धार्मिक और अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थानों के संरक्षण की दिशा में एक अहम पड़ाव माना जा रहा है।

27 याचिकाओं पर सुनवाई, कोर्ट ने लगाई प्रशासनिक मनमानी पर रोक

न्यायमूर्ति जसप्रीत सिंह की ग्रीष्मावकाश कालीन एकल पीठ ने इन मदरसों की ओर से दाखिल 27 याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए 3 जुलाई तक के लिए अंतरिम रोक का आदेश दिया। याचिका में प्रशासन द्वारा 1 मई को जारी किए गए उन नोटिसों को चुनौती दी गई थी, जिनमें धार्मिक शिक्षा बंद करने और मदरसों को गिराने की चेतावनी दी गई थी।

सभी नोटिसों का नंबर एक जैसा, कोर्ट ने जताई गंभीर आपत्ति

कोर्ट ने सरकार द्वारा जारी नोटिसों को ‘प्रथम दृष्टया बेतुका’ बताते हुए कहा कि सभी नोटिसों का क्रमांक एक जैसा है। इससे साफ प्रतीत होता है कि इन्हें बिना किसी विश्लेषण या निष्पक्ष जांच के जारी किया गया है। कोर्ट ने टिप्पणी की कि इस तरह की कार्यवाही न्यायिक दखल का मामला बनती है, और अल्पसंख्यकों के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है।

याचिकाकर्ता पक्ष की दलीलें और पिछला संदर्भ

याचिकाकर्ता पक्ष की ओर से अधिवक्ता अविरल राज सिंह ने तर्क दिया कि पूर्व में एक अन्य मामले में अदालत ने इसी प्रकार के नोटिसों के खिलाफ मदरसों को राहत दी थी। ऐसे में समान प्रकृति के मामलों में याचियों को भी अपनी बात रखने का अवसर मिलना चाहिए था। कोर्ट ने इस तर्क को स्वीकार करते हुए अंतरिम राहत देने का फैसला सुनाया।

सरकारी वकील की तैयारी पर सवाल, मांगा दो हफ्ते का समय

सुनवाई के दौरान सरकारी वकील अदालत में समय रहते कोई ठोस जानकारी या जवाब पेश नहीं कर सके। उन्होंने अतिरिक्त दो सप्ताह का समय मांगा, जिसे अदालत ने मंजूर कर लिया। अब अगली सुनवाई 3 जुलाई को निर्धारित की गई है।

3 जुलाई तक कोई कार्रवाई नहीं, हाईकोर्ट का स्पष्ट आदेश

अदालत ने साफ कहा है कि अगली सुनवाई तक याचिकाकर्ता मदरसों के खिलाफ न तो कोई उत्पीड़नात्मक कार्रवाई की जाएगी, न ही किसी भी मदरसे को गिराया जाएगा। यह आदेश न केवल धार्मिक शिक्षा संस्थानों की सुरक्षा की दिशा में एक अंतरिम राहत है, बल्कि प्रशासनिक जवाबदेही को भी रेखांकित करता है।

न्यायपालिका ने निभाई संतुलनकारी भूमिका

श्रावस्ती के 27 मदरसों को राहत देकर हाईकोर्ट ने साफ संकेत दिया है कि प्रशासनिक निर्णय संवैधानिक सिद्धांतों और न्यायिक परीक्षण से परे नहीं हो सकते। यह मामला न सिर्फ कानूनी, बल्कि सामाजिक और धार्मिक दृष्टिकोण से भी अत्यधिक संवेदनशील है, और आगामी सुनवाई पर सबकी निगाहें टिकी रहेंगी।

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