वैज्ञानिकों के अनुमान से बढ़ी टेंशन: केवल 1 देश में लेंगे दुनिया के आधे बच्चे जन्म, जानिए कौनसा है वो देश ?

20वीं सदी में वैश्विक जनसंख्या में तीव्र वृद्धि देखी गई थी, लेकिन अब विशेषज्ञों का मानना है कि यह वृद्धि शिखर पर पहुंच चुकी है और आने वाले दशकों में अधिकांश देशों में जनसंख्या में गिरावट देखने को मिलेगी। इस परिवर्तन का प्रभाव सामाजिक, आर्थिक और स्वास्थ्य संबंधी क्षेत्रों पर पड़ेगा।

स्थिरता की ओर बढ़ता देश

भारत में जन्म दर में लगातार गिरावट देखी जा रही है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) के अनुसार, भारत की कुल प्रजनन दर (TFR) 2.0 तक पहुंच गई है, जो कि जनसंख्या स्थिरता के लिए आवश्यक 2.1 के स्तर से नीचे है। यह गिरावट महिलाओं की शिक्षा, शहरीकरण, और परिवार नियोजन कार्यक्रमों की सफलता का परिणाम है।

2100 तक दुनिया के आधे बच्चे यहीं जन्म लेंगे

अफ्रीका, विशेष रूप से उप-सहारा क्षेत्र, में जन्म दर उच्च बनी हुई है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, 2100 तक दुनिया के 54% बच्चे उप-सहारा अफ्रीका में जन्म लेंगे, जो 2021 में 29% था। यह वृद्धि स्वास्थ्य सेवाओं, शिक्षा, और बुनियादी ढांचे पर दबाव डाल सकती है।

वैश्विक शक्ति संतुलन में बदलाव

भारत और चीन जैसे देशों में जन्म दर में गिरावट और अफ्रीका में वृद्धि से वैश्विक जनसांख्यिकीय संतुलन बदल रहा है। जहां एक ओर भारत में वृद्ध जनसंख्या का अनुपात बढ़ेगा, वहीं अफ्रीका में युवा जनसंख्या का दबदबा रहेगा। यह परिवर्तन वैश्विक अर्थव्यवस्था, श्रम बाजार, और सामाजिक संरचनाओं को प्रभावित करेगा।

वृद्ध जनसंख्या और श्रमबल में कमी

भारत में जन्म दर में गिरावट से वृद्ध जनसंख्या का अनुपात बढ़ेगा, जिससे स्वास्थ्य सेवाओं और पेंशन प्रणाली पर दबाव बढ़ेगा। इसके अलावा, श्रमबल में कमी से आर्थिक विकास की गति प्रभावित हो सकती है। सरकार को इन चुनौतियों से निपटने के लिए नीतिगत उपाय करने होंगे।

संतुलित जनसंख्या नीति की आवश्यकता

भारत को जनसंख्या स्थिरता बनाए रखने के लिए संतुलित नीतियों की आवश्यकता है। महिलाओं की शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता, और परिवार नियोजन कार्यक्रमों को और सशक्त बनाना होगा। साथ ही, वृद्ध जनसंख्या की देखभाल के लिए सामाजिक सुरक्षा प्रणाली को मजबूत करना आवश्यक है।

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