43 साल जेल में काटी सजा.. 104 वर्ष की उम्र में कोर्ट ने सुनाया चौंकाने वाला फैसला, जिसने सुना वो रोया

उत्तर प्रदेश के कौशांबी जिले से एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। 43 साल तक जेल में रहने के बाद 104 वर्षीय लखन को हत्या के आरोप से बाइज्जत बरी कर दिया गया है। यह फैसला न सिर्फ कानूनी प्रणाली पर कई सवाल खड़े करता है, बल्कि इसने इंसान की हिम्मत और न्याय के लिए लड़ाई की भी मिसाल कायम की है।
1982 से चला आ रहा था मुकदमा
मामला 1982 का है, जब प्रयागराज जिले की एक निचली अदालत ने लखन और उनके तीन साथियों के खिलाफ हत्या का आरोप सिद्ध करते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी। चारों आरोपियों को प्रयागराज जिला एवं सत्र न्यायालय द्वारा दोषी ठहराया गया था। इस फैसले के खिलाफ लखन ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अपील दायर की थी।
उच्च न्यायालय का फैसला: बाइज्जत बरी किया
लंबी कानूनी लड़ाई के बाद, 02 मई 2025 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने लखन को हत्या के आरोप से बरी कर दिया। इस ऐतिहासिक फैसले में न्यायालय ने यह भी माना कि सबूत अपर्याप्त थे और आरोप सही सिद्ध नहीं हुए। दुखद यह रहा कि लखन के तीन साथी, जो उन्हीं के साथ आरोपी थे, इस फैसले से पहले ही दुनिया छोड़ चुके थे। वे जेल में ही अपनी सजा काटते हुए मृत्यु को प्राप्त हो गए।
रिहाई के बाद भावुक दृश्य: बेटी ने कहा – ‘दाग मिट गया’
कौशांबी जिला जेल से रिहा होने के बाद लखन को शरीरा थाना क्षेत्र में स्थित उनकी बेटी आशा के ससुराल लाया गया। आशा ने कहा, “पिता जी को पैर में लगातार दर्द रहता है और वे बिना सहारे चल नहीं सकते। अब वे हमारे साथ ही रहेंगे और हम उनकी देखभाल करेंगे।”
उन्होंने भावुक होते हुए आगे कहा, “हमने जिंदगी के इतने साल सिर्फ इस इंतजार में बिता दिए कि एक दिन उन्हें इंसाफ मिलेगा। अब वे शांति से अंतिम सांस ले सकेंगे। अदालत का यह फैसला हमारे लिए किसी चमत्कार से कम नहीं है।”
शारीरिक स्थिति: उम्र का असर, पर हिम्मत नहीं टूटी
104 वर्षीय लखन की उम्र अब इतनी हो चुकी है कि वे अब खुद से चल-फिर भी नहीं सकते। उन्हें हर गतिविधि के लिए मदद की आवश्यकता होती है। लेकिन इतनी तकलीफों और उम्रदराज़ होने के बावजूद उन्होंने न्याय के लिए लड़ाई जारी रखी। यह उनकी अडिग इच्छाशक्ति और आत्मबल का उदाहरण है।
न्याय में देरी, पर न्याय मिला: न्यायपालिका पर गंभीर सवाल
यह मामला न्यायपालिका की धीमी प्रक्रिया पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है। जहां एक निर्दोष व्यक्ति को 43 साल तक जेल में रहना पड़ा, वहीं यह भी साफ है कि यदि इंसान हिम्मत न हारे, तो सच की जीत जरूर होती है। यह घटना देश के लिए एक चेतावनी भी है कि निर्दोषों को जल्द न्याय दिलाने की व्यवस्था में सुधार की सख्त जरूरत है।
इंसाफ की उम्मीद अब भी जिंदा है
लखन की कहानी न केवल कानूनी लड़ाई का प्रतीक है, बल्कि यह एक भावनात्मक यात्रा भी है। इस फैसले ने यह सिद्ध कर दिया कि भले ही देर हो जाए, परंतु इंसाफ कभी न कभी मिलता जरूर है। यह मामला उन हजारों लोगों के लिए आशा की किरण है, जो वर्षों से न्याय के लिए लड़ रहे हैं।