“देर भी, और अंधेर भी !” 53 साल का नाबालिग रेपिस्ट.. सुप्रीम कोर्ट ने सजा की रद्द, होश उड़ा देगा ये मामला, जानिए..

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार, 23 जुलाई 2025 को 1988 में एक नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार के मामले में दोषी ठहराए गए एक व्यक्ति की सजा रद्द कर दी, क्योंकि अपराध के समय वह खुद नाबालिग पाया गया। हालांकि, कोर्ट ने उसकी दोषसिद्धि बरकरार रखी, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि नाबालिग होने से अपराध की गंभीरता कम नहीं होती, लेकिन सजा देने की प्रक्रिया पर प्रभाव अवश्य पड़ता है।
नाबालिग होने का दावा सुप्रीम कोर्ट में आया सामने
मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई (CJI BR Gavai) और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि आरोपी ने यह दावा किया कि अपराध के समय वह नाबालिग था। सुप्रीम कोर्ट ने इस दावे को गंभीरता से लेते हुए अजमेर के जिला एवं सत्र न्यायाधीश को जांच का आदेश दिया।
आरोपी की उम्र घटना के समय 16 साल थी
जांच रिपोर्ट के अनुसार, अपराध की तारीख 17 नवंबर 1988 को आरोपी की उम्र 16 साल, 2 महीने और 3 दिन थी। कोर्ट ने इसे किशोर न्याय अधिनियम के दायरे में मानते हुए कहा—
“अपीलकर्ता अपराध के समय नाबालिग था, इसलिए उसके साथ किशोर न्याय अधिनियम, 2000 के प्रावधानों के अनुसार व्यवहार किया जाना चाहिए।”
किशोर न्याय अधिनियम की धाराओं का उल्लेख
बेंच ने कहा कि चूंकि आरोपी उस समय नाबालिग था, इसलिए उसके मामले में किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2000 की धारा 15 और 16 लागू होंगी।
- धारा 15 नाबालिगों के संबंध में पारित किए जा सकने वाले आदेशों से जुड़ी है।
- धारा 16 नाबालिगों के खिलाफ पारित न किए जा सकने वाले आदेशों का निर्धारण करती है।
सजा रद्द, लेकिन दोष साबित: सुप्रीम कोर्ट का संतुलित निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि दोषसिद्धि रद्द नहीं की जा रही है, क्योंकि अपराध साबित हो चुका है। लेकिन चूंकि आरोपी नाबालिग था, इसलिए उसे जेल की सजा नहीं दी जा सकती।
कोर्ट ने कहा—
“निचली अदालत और हाईकोर्ट द्वारा दी गई सजा को रद्द किया जाता है क्योंकि यह विधिसम्मत नहीं है।”
अब क्या होगा? बोर्ड के समक्ष पेशी का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने मामले को जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड को भेजते हुए आदेश दिया कि आरोपी को 15 सितंबर को बोर्ड के सामने पेश किया जाए, ताकि उसकी उम्र और अपराध की प्रकृति के अनुसार उचित आदेश पारित किए जा सकें।
राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ थी यह अपील
यह फैसला राजस्थान हाईकोर्ट द्वारा जुलाई 2024 में सुनाई गई सजा के खिलाफ दायर की गई अपील पर आया है। हाईकोर्ट ने आरोपी को जेल की सजा सुनाई थी, जिसे अब सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया है, लेकिन आरोपी की दोषसिद्धि वैध मानी गई है।
न्याय में तकनीकी और मानवीय संतुलन का उदाहरण
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भारतीय न्याय व्यवस्था में कानूनी तकनीकियों और मानवाधिकारों के संतुलन का उदाहरण है। यह बताता है कि नाबालिग होने का दावा किसी भी चरण में किया जा सकता है, और यदि वह प्रमाणित हो जाए, तो मामला दोबारा उस दृष्टिकोण से देखा जाएगा।