आखिर क्यों 14% भारतीय नहीं कर पा रहे बच्चे पैदा ? फर्टिलिटी पर UN की चौंकाने वाली रिपोर्ट से बढ़ी टेंशन

संयुक्त राष्ट्र की नवीनतम जनसंख्या रिपोर्ट – “रियल फर्टिलिटी क्राइसिस” में प्रकृति यह तथ्य सामने आया है कि दुनियाभर में कई जोड़े अपनी इच्छित संख्या में संतान नहीं पैदा कर पा रहे हैं। भारत में लगभग 13% जोड़े बांझपन का सामना कर रहे हैं, जबकि 38% युवाओं को आर्थिक बाधाओं के कारण संतान नहीं चाहने का अफसोस है। कुछ देशों में यह दर 13‑14% तक पाई गई है ।
भारत की जनसंख्या और जन्म दर पर असर
जनसंख्या वृद्धि: 2025 में भारत की जनसंख्या लगभग 1.46 अरब तक पहुंचने की संभावना है, जो दुनिया में सबसे अधिक है।
जनन दर (TFR): भारत की कुल जनन दर घटकर 1.9 हो गई है – रिप्लेसमेंट लेवल (2.1) से नीचे।
इसका मतलब है कि महिलाएं औसतन अपेक्षा से कम संतान पा रही हैं।
सिर्फ मेडिकल मुद्दा नहीं
UNFPA रिपोर्ट बताती है कि भारत में लगभग 13% लोग – खासकर शहरी निवासी – बांझपन की समस्या का सामना कर रहे हैं । SCMP की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले दस वर्षों में बांझपन और श्रीवृत्ति के चक्रों में बाधा स्पष्ट है ।
प्रजनन एजेंसी की असमर्थता
सर्वे में शामिल 38% भारतीयों ने आर्थिक कमजोरियों को मुख्य वजह बताया, जैसे नौकरी असुरक्षा, महंगी शिक्षा या आवास की समस्या।
21% ने नौकरी की स्थिरता को रुकावट बताया
22% घर खरीदने में चिंतित।
18% सुविधा युक्त बाल-देखभाल की कमी से चिंतित।
15% अपनी सामान्य स्वास्थ्य स्थिति को समस्या माना ।
स्वास्थ्य और बांझपन के अन्य कारण
स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियाँ: 14% को गर्भावस्था देख रेख तक पहुंचने में समस्याएं हैं, और 13% बांझपन की शिकायत करते हैं ।
लाइफस्टाइल कारक: भारत में धूम्रपान, शराब, और ई-सिगरेट जैसी आदतें प्रजनन क्षमता को प्रभावित कर रही हैं; विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि ये हार्मोन और प्रजनन अंगों को नुकसान पहुँचा सकती हैं ।
पुरुषों में गिरती फर्टिलिटी: पुरुषों में बीते कुछ दशकों में शुक्राणुओं की संख्या, गति और गुणवत्ता में गिरावट दर्ज हुई है – एक अध्ययन अनुसार स्खलन गुणवत्ता में 30% की गिरावट हुई है ।
सामाजिक और मानसिक असर
बांझपन ना सिर्फ एक चिकित्सा समस्या है, बल्कि भावनात्मक, सामाजिक और आर्थिक पहलुओं से भी भरा हुआ है।
महिलाएं अक्सर सामाजिक कलंक, तनाव, अवसाद और आत्म–अहमी भावना से जूझती हैं ।
पारंपरिक सामाजिक दबाव, परिवारों की अपेक्षाएँ भी प्रजनन फैसलों को प्रभावित करती हैं।
अधिक ‘प्रजनन एजेंसी’ की ओर बढ़ना
UNFPA रिपोर्ट में सुझाव दिए गए हैं कि यह समस्या जन्म दर की गिरावट नहीं, बल्कि ‘व्यक्तिगत प्रजनन अधिकार’ की कमी है। इसके लिए पांच सूत्री रणनीति सुझाई गई है:
सभी तक यौन स्वास्थ्य सेवाएं पहुँचाना – गर्भनिरोध, सुरक्षित गर्भपात, बांझपन उपचार।
संरचनात्मक बाधाएं दूर करना – शिक्षा, स्वास्थ्य, ब्यस्त कार्य नीति, बाल देखभाल, आदि।
सभी समूहों तक समान पहुंच – अविवाहित, LGBTQIA+, अल्पसंख्यक।
आर्थिक सुरक्षा – नौकरियों, आवास, वित्तीय सहयोग।
सामाजिक जागरूकता – संरचनात्मक लिंग भेदभाव, सांस्कृतिक दबाव को चुनौती देना।
क्षेत्रीय अंतर और परिवार नियोजन
भारत में जनन दर में ऊँच-नीच बनी हुई है।
बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में अभी भी उच्च जनन दर दिख रही है, जबकि केरल, तमिलनाडु और दिल्ली जैसे क्षेत्रों में यह रिप्लेसमेंट से नीचे है ।
केंद्र सरकार की मिशन परिवार विकास योजना सहित अन्य पहल ने भी जनन दर पर प्रभाव डाला है ।
भारत में लगभग 14% जोड़े बांझपन से जूझ रहे हैं और कई लोग वित्तीय व सामाजिक कारणों से अपने इच्छित परिवार की कल्पना तक नहीं कर पा रहे। समस्या सिर्फ जन्मदर का नहीं, बल्कि यह ‘प्रजनन एजेंसी’ की है — जहाँ व्यक्ति स्वतंत्र, सुचित और सुविधासम्पन्न होकर परिवार की राह चुन सके।
समाधान में सुधारित स्वास्थ्य सेवाएं, आर्थिक व सामाजिक सहारा, लैंगिक समानता और जागरूकता जरूरी हैं।